भोज n. ऐतरेय ब्राह्मण में प्रयुक्त नृपों की उपाधि
[ऐ.ब्रा.८.१२,१४.१७] । इन्हें ‘भौज्य’ नामांतर भी प्राप्त है
[ऐ.ब्रा.७.३२,८.६, १२, १४, १६] । ऋग्वेद में भोज शब्द का प्रयोग दाता अर्थ में भी किया गया है
[ऋ.१०.१०७.८-९] ।
भोज II. n. एक लोकसमूह, जो सुदास राजा का अनुचर था । ऋग्वेद के अनुसार, इन लोगों ने विश्वामित्र ऋषि के अश्वमेध यज्ञ में उसकी सहायता की थी
[ऋ.३.५३.७] ।
भोज III. n. पुराणों में निर्दिष्ट महाभोज राजा के वंशजों के लिये मुक्त सामूहिक नाम । इन लोगों की एक शाखा मृत्तिकावत् नगर में रहती थी, जो बभ्रु दैवावृध नाम राजा से उत्पन्न हुई थी
[ब्रह्म.१५.४५] ।
भोज IV. n. एक राजवंश, जो सुविख्यात यादवकुल में अंतर्गत था
[म.आ.२१०.१८] । इन्हे वृष्णि, अंधक, आदि नामांतर भी प्राप्त थे । इस वंश में उत्पन्न एक राजा को उशीनर से एक खङ्ग के प्राप्ति हुई थी
[म.शां.१६६.८९] । संभव है, इस वंश में निम्नलिखित राजा समाविष्ट थेः---(१) विदर्भाधिपति भीष्म---इसे महाभारत में भोज कहा गया है
[म.उ.१५५.२] । (२) कुकुरवंशीय आहुक---इसे हरिवंश में भोज कहा गया है
[ह.वं.१.३७.२२] । (३) विदर्भाधिपति रुक्मिन्---इसने ‘भोजकट’ (भोजों का नगर) नामक नयी राजधानी की स्थापना की थी (रुक्मिन् देखिये) । (४) महाभोज---यह यादववंशीय सात्वत राजा का पुत्र था । भागवत के अनुसार इसके वंशज भोज कहलाते थे
[भा.९.२४.७-११] ।
भोज IX. n. कान्यकुब्ज देश का एक राजा । एक बार इसे एक सुंदर स्त्री का दर्शन हुआ, जिसका सारा शरीर मनुष्याकृति होने पर भी केवल मुख हिरणी का था । इस विचित्र देहाकृति स्त्री को देखने पर इसे अत्यधिक आर्श्वय हुआ, एवं इसने उसकी पूर्व कहानी पूछी । फिर इसे पता चला की, वह स्त्री पूर्वजन्म में हिरनी थी । उस हिरनी के शरीर का जो भाग तीर्थ में गिरा, उसे मनुष्याकृति प्राप्त हुई, एवं केवल मुख तीर्थस्पर्श ने होने से हिरणी का ही रह गया । पश्चात् इसने इस स्त्री के मुख का खोज किया, एवं उसे तीर्थ में डुबों दिया, जिस कारण उस स्त्री को सुंदर मनुष्याकृति मुख की प्राप्ति हो गई । पश्चात् इस राजा ने उस स्त्री के साथ विवाह किया
[स्कंद७.२.२] ।
भोज V. n. मार्तिकावत् (मृत्तिकावती) नगरी का एक राजा, जो द्रौपदी के स्वयंवर में उपस्थित था
[म.आ.१७७.६] ।
भोज VI. n. एक राजवंश, जो हैहयवंशीय तालजंघ राजवंश में समाविष्ट था ।
भोज VII. n. (सो. विदू.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार, प्रतिक्षत्र राजा का पुत्र था । अन्य पुराणों में इसका ‘स्वयंभोज’ नामांतर दिया गया है, एवं इसे क्रोष्टुवंशीय कहा गया है ।
भोज VIII. n. कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण ।