धर्मदत्त n. एक ब्राह्मण । यह करवीर नगर में रहता था । एक बार पूजासाहित्य ले कर, यह मंदिर में जा रहा था । राह में इसे कलहा नामक राक्षसी दिखी । उसे देखते ही यह भये से गर्भगलित हो गया । थोडा धीरज बॉंध कर, इसने पास का पूजासाहित्य उस के मुख पर फेंक दिया । उस साहित्य में से एक तुलसीपत्र कलहा के शरीर पर गिरा, एवं उस से उसे पूर्वजन्म का स्मरण हो गया । अपना क्रूर स्वभाव त्याग कर, दुष्ट राक्षसयोनि से मुक्ति का उपाय, कलहा ने धर्मदत्त से पूछा । धर्मदत्त के हृदय में कलहा के प्रति दया उत्पन्न हो गयी, एवं इसने अपने कार्तिक व्रत का पुण्य उसे दे दिया । इससे उसका उद्धार हुआ
[पद्म.उ.१०६-१०८] ;
[स्कंद. २. ४.२४-२५] । कार्तिकव्रत के पुण्य के कारण, अगले जन्म में यह दशरथ बना । कलहा इसके आधे पुण्य के कारण, इसकी पत्नी कैकयी बनी दशरथ देखिये;
[आ.रा.सार.५] ।
धर्मदत्त II. n. कश्यप का स्नेही । कश्यपपुत्र गजानन को यह हमेशा अपने घर भोजन के लिये बुलाता था
[गणेश.२.१४] ।