देवशर्मन n. एक ऋषि । इसकी स्त्री रुचि
[म.अनु.७५.१८,४१ कुं.] ।
देवशर्मन II. n. जनमेजय के सत्र का एक सदस्य
[म.आ.४८.९] ।
देवशर्मन III. n. वायुमत में व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरा के शाकपूर्ण रथीतर का शिष्य (व्यास देखिये) ।
देवशर्मन IV. n. एक सदाचारी ब्राह्मण । अपने पिता का वर्षश्राद्ध सुयोग्य ब्राह्मण के हाथों से, यह हर साल करता था । एकबार, श्राद्ध के बाद यह ऑंगने में बैठा था । तब एक बैल तथा कुतिया का संभाषण इसने सुना । उस संभाषण से इसे पता चला कि, वे दोनों इसके मातापिता हैं, तथा श्राद्ध की गडबडी वो दोनों भूखे रह गये हैं । अपने मातापिता को, बैल एवं कुतिया का जन्म कैसे प्राप्त हुआ, इसका कारण पूछने के लिये, यह वसिष्ठ के पास गया । वसिष्ठ ने सारी घटनायें अन्तर्ज्ञान से जान कर, इसे बताया, ‘रजस्वला स्थिति में तुम्हारी माता ने भोजन पका कर ब्राह्मणों को खिलाया । इस कारण उन दोनों को यह दुःस्थिति प्राप्त हुई है’। इस पर उपाय पूछने पर, वसिष्ठ ने भाद्रपद शुद्ध पंचमी को, ऋषिपंचमी व्रत करने के लिये इसे कहा । उसे करने के बाद, इसके मातापिता का उद्धार हुआ
[पद्म.उ.७७] ।
देवशर्मन IX. n. विष्णु का एक अवतार । जालंधर दत्य एवं देवताओं का युद्ध चल रहा था । उस समय, जालंधर दैत्य की पत्नी वृंदा को एवं उसकी सखी स्मरदूति को फँसाने के लिये, विष्णु ने देवशर्मा नामक तपस्वी का वेष धारण किया । अपने को भरद्वाज गोत्रज ऋषि बता कर, देवशर्मा के रुप धारण करनेवाला विष्णु वृंदा को अपने आश्रम में ले गया । पश्चात् जालंधर का रुप धारण कर के, विष्णु ने देवशर्मा के आश्रम में वृंदा नाम उपभोग लिया
[पद्म. उ.१८] ; जालंधर देखिये ।
देवशर्मन V. n. एक ब्राह्मण । प्रत्येक पर्व मेंयह समुद्रसंगम पर श्राद्ध करता था । उस श्राद्ध से इसके पितर प्रत्यक्ष आ कर इसे आशीर्वाद देते थे । एक बार अपने पितरों के साथ यह पितृलोक गया । वहॉं अपने पितरों से भी अधिक सुखी अन्य पितर इसने देखे । उसक रहस्य पूछने पर इसे ज्ञात हुआ कि, उनके श्राद्ध महीसागर संगम पर होते हैं । वहीं श्राद्ध करने का इसने निश्चय किया । पश्चात् यह पृथ्वी पर आया, एवं अन्य लोगों की सहायता से महीसागर संगम पर इसने श्राद्ध किया । उससे इसके पितरों का उद्धार हुआ
[स्कंद.१.२.३] ।
देवशर्मन VI. n. पुरंदर नगर में रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसने अनेक पुण्यकृत्य किये । इंतु उनसे इसके मन को शांति प्राप्त नहीं हुई । अन्त में भगवद्गीता के दुसरे अध्याय से इसे मनःशांति प्राप्त हुई ।
[पद्म. उ.१७६] ।
देवशर्मन VII. n. मायापुरी में रहनेवाला अत्रिकुल का एक ब्राह्मण । इसकी कन्या का नाम गुणवती तथा दामाद का नाम चन्द्रशर्मा था । चंद्रशर्मा इसका शिष्य भी था । एक बार ये दोनों अरण्य में दर्भसमिधा लाने के लिये गये । एक राक्षस ने इनका वध किया । अनेक प्रकार के धर्माचरणों के कारण, ये वैकुंठ गये
[पद्म. उ.८८] ; सत्यभामा देखिये ।
देवशर्मन VIII. n. कावेरी नदी के उत्तरतट पर रहने वाला एक ब्राह्मण । कार्तिक माह में अपने पुत्र को इसने स्नानादि कर्म करने के लिये कहा । उसने दुर्लक्ष किया । तब क्रुद्ध हो कर, इसने पुत्र को शाप दिया, ‘तुम चूहा बनोंगे’। बाद में पुत्रद्वारा प्रार्थना की जाने पर, इसने उःशाप दिया, ‘कार्तिकमाहात्म्य सुनने पर तुम मुक्त हो जांवोगे’। उस शाप के अनुसार , इसका पुत्र चूहा बन कर अरण्य में गया । एक बार एक ऑंवले के वृक्ष के नीचे, विश्वामित्र ऋषि अपने शिष्यों को कार्तिकमाहात्म्य बता रहा था । उसे सुन कर वह ब्राह्मणपुत्र मुक्त हुआ
[स्कंद.२.४.१२] ।