कुश, लव n. दाशरथि राम से सीता को उत्पन्न जुडवॉं पुत्र । लोकापवाद के भय से, राम ने सीता का त्याग करने का निश्चय किया । लक्ष्मण के द्वारा, उसे तमसा के किनारे वाल्मीकिआश्रम के समीप छोड दिया । यह वार्तां शिष्यों के द्वारा वाल्मीकि को ज्ञात हुई । तब आश्रम में मुनि पत्नियों के पास सीता की रहने की व्यवस्था उसने कर दी
[वा.रा.उ.४८-४९] । बाद में श्रावण माह में, आधी रात के समय सीता प्रसूत हुई तथा उसे दे पुत्र हुए । जैसे ही वाल्मीकि को यह मालूम हुआ, वैसे ही बालकों की सुरक्षा के लिये वह दौडा । निचले हिस्से में तोडी हुई दर्भमुष्टि, अभिमंत्रित कर के उसने वृद्ध स्त्रियों को दी, तथा प्रथम जन्मे हुवें पुत्र के शरीर पर से घुमाने के लिये कहा । बाद में जन्मे पुत्र के शरीर से, दर्भ का उपरीला हिस्सा घुमाने के लिये कहा । इन दोनो पुत्रों का नाम क्रमशः कुश तथा लव रखने के लिये कहा
[वा.रा.उ.६६] । दर्भ तथा दूर्वाकुरों से इनके शरीर पर पानी सींचा गया, इस लिये इनके नाम कुश तथा लव रखे गये
[जै.अ.२८] । जिस दिन लव तथा कुश का जन्म हुआ, उस दिन लवणासुर का पारिपत्य करने के लिये जाता हुआ शत्रुघ्न वाल्मीकि के आश्रम में ही था । यह वार्ता ज्ञात होते ही उसे अत्यंत आनंद हुआ । पद्मपुराण में लिखा गया है, लवणासुर का पारिपत्य कर के शत्रुघ्न जब वह वापस जा रहा था, तब वह आश्रम में आया था, परंतु सीता आश्रम में प्रसूत हो गई है, यह वार्ता वाल्मीकि ने उसे नहीं बताई
[पद्म.पा.५९] । यह कथन उपरोक्त कथन के ठीक विपरीत है । इसके बाद वाल्मिकि ने इनके जातकर्मादि संस्कार किये । वेद एवं वेदों के दृढीकरण के लिये उन्हें रामायण सिखाया । धनुर्विद्या के समान क्षात्रविद्या में इन्हें निष्णात किया । बाद में अश्वमेध करने के लिये राम ने अश्वमेधीय अश्व छोडा । इन्हों ने उसे पकड लिया । उस अश्व के मस्तक पर लिखे हुए लेख ने इनका क्षत्रियत्व जागृत किया । उस लेख में लिखा थाः