कहोड (कौषीतकेय), कहोल (कौषीतकेय) n. एक ऋषि । व्रीहि, यवादि नये अनाज वृष्टि से उत्पन्न होने के कारण, पहले देवताओं के लिये आग्रयण (अर्थात अन्न का याग) कर भक्षण करना चाहिये, ये रीति इसने आरंभ की । आश्वलायनगृह्यसूत्र में ब्रह्मज्ञांगतर्पण में इसका नाम है । इसका कौषीतकेय नामान्तर भी मिलता है
[वृ.उ.३.५.१] । यह याज्ञवल्क्य का समकालीन था
[श. ब्रा.२.३.५१] ;
[सां.आ.१५] ; काहाडी देखिये । यह उद्दालक ऋषि का शिष्य था । इसने गुरुगृहा में रह कर गुरु की उत्तम प्रकार से सेवा की,, इसलिये गुरु ने प्रसन्न हो कर इसे अपनी कन्या सुजाता ब्याह दी । उसे ले कर इसने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया । सुजाता गर्भवती हुई । एक बार यह अध्ययन कर रहा था, तब सुजाता के गर्भ ने इसे अध्ययन न करने के लिये कहा । तब क्रोधित होकर इसने उस गर्भ को शाप दिया कि, तुम आठ स्थानों पर वक्र बनोगे । कुछ काल के बाद इसे अष्टावर्क नामक पुत्र हुआ । आगे चल कर, एकबार जब यह द्रव्ययाचना के लिये जनक राजा के पास गया, तब वरुणपुत्र बंदी ने अनेक ऋषियों को वाद में जीत कर पानी में डुबा दिया
[म.व.१३४] । उस में यह भी डूब गया । वहॉं से इसके पुत्र ने बंदी को बाद में के जीत कर वापस लाया
[म.व.१३४-३१] । यह एक मध्यमाध्वर्यु है ।