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माद्री n. मद्रदेश के राजा ऋतायन की पुत्रे, जो पाण्डु की द्वितीय पत्नी, तथा नकुल-सहदेव की माता थी । मद्रराज शल्य इसका भाई था । यह ‘धृति’ नामक देवी के अंश से उत्पन्न हुई थी [म.आ.६१.९८] । प्राचीन काल में रावी तथा व्यास नदी के बीच के दोआब का भाग ‘मद्र’ कहलाता था, जो आजकल पंजाब प्रान्त में स्थित है । उन दिनों शाकल मद्र देश की राजधानी थी, तथा इस देश की राजकन्याओं को सामान्यतः ‘माद्री’ कहते थे [म.स.२९.१३] ।
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स्त्री. ( तंजा . ) प्रकार ; तर्हा . [ सं . मात्र ; ता . मादिरी ]
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माद्री n. यह परम रुपवती थी, कारण एक तो यह देवी से उत्पन्न हुयी थी, दूसरे पंजाब प्रान्त के लोग सुन्दर होते ही है । अतएव इसके सुन्दरता की प्रशंसा सुन कर, भीष्म ने शल्य के यहॉं जा कर इसे पाण्डु के लिए मॉंगा था । शल्य के यहॉं यह नियम था कि, वरपक्ष से अत्यधिक धनसम्पति लेकर लडकी दी जाती थी, अतएव भीष्म को उनकी प्रथा के अनुसार, कन्या के शुल्क के रुप में बहुतसा धन देना पडा था । तब उस देश की रीतिरिवाज के अनुसार, शल्य ने भी आभूषणों आदि से अलंकृत कर के माद्री को भीष्म के हाथों सौंप दिया । बाद में भीष्म ने हस्तिनापुर में आ कर शुभ दिन तथा शुभ मुहूर्त में पाण्डु से इसका विवाह किया [म.आ.१०५.५-६] ।
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माद्री n. किंदम मुनि के द्वारा पाण्डु को शाप दिया जाने पर, पाण्डु के साथ माद्री भी वन मे रहने के लिए गयी थी [म.आ.११०] । वहॉं ऋषियों के कथनानुसार, पाण्डु ने कुन्ती को पुत्र उत्पन्न करने की आज्ञा दी । उसने दुर्वास के ‘आकर्षण मंत्र’ के प्रभाव से तीन पुत्र उत्पन्न किये । बाद में कुंती ने अधिक पुत्र उत्पन्न करने के लिये मनाही कर दी । तब माद्री की प्रार्थनानुसार, पान्डु ने वह मंत्र कुंती से इसे दिलाया । उस मंत्र के स्मरण से, इसे अश्विनीकुमार जैसे सुन्दर नकुल तथा सहदेव नामक पुत्र हुए [भा.९.२२.२८] ;[म.आ.११५.२१] ।
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