व्याडि दाक्षायण n. एक सुविख्यात व्याकरणकार जो ‘संग्रह’ नामक वैदिक व्याकरणविषयक ग्रन्थ का कर्ता माना जाता है । इसका यही ग्रन्थ लुप्त होने पर, पतंजलि ने व्याकरण महाभाष्य नामक ग्रंथ की रचना की थी । अमरकोश के अनेकानेक भाष्यग्रन्थों में, व्याडि एवं वररुचि को व्याकरणशास्त्र के अंतर्गत लिंगभेदादि के शास्त्र का सर्वश्रेष्ठ आचार्य कहा गया है । व्याकरण महाभाष्य में एवं काशिका में इसका निर्देश क्रमशः ‘दाक्षायण’ एवं ‘दाक्षि’ नाम से प्राप्त है
[महा. २.३.६६] ;
[काशिका. ६.२.६९] । काशिका के अनुसार, दाक्षि एवं दाक्षायण समानार्थि शब्द माने जाते थे
[काशिका. ४.१.१७] तत्रभवान् दाक्षायणः दाक्षिर्वा ।
व्याडि दाक्षायण n. आचार्य पाणिनि दाक्षीपुत्र नाम से सुविख्यात था । इसी कारण ‘दाक्षायण’ व्याडि एवं ‘दाक्षीपुत्र’ पाणिनि अपने मातृवंश की ओर से रिश्तेदार थे, ऐसा माना जाता है । व्याडि की बहन का नाम व्याड्या था
[पा. सू. ४.१.८०] , एवं पाणिनि की माता का नाम दाक्षी था । कई अभ्यासकों के अनुसार, व्याड्या एवं दाक्षी दोनों एक ही थे, एवं इस प्रकार व्याडि आचार्य पाणिनि के मामा थे । किंतु वेबर के अनुसार, इन दो व्याकरणकारों में दो पीढ़ीयों का अंतर था, एवं ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ में निर्दिष्ट व्याडि पाणिनि से उत्तरकालीन था । संभवतः इसके पिता का नाम व्यड था, जिस कारण इसे ‘व्याडि’ पैतृक नाम हुआ होगा। इसके ‘दाक्षायण’ नाम से इसके वंश के मूळ पुरुष का नाम दक्ष विदित होता है । किंतु अन्य कई अभ्यासक, ‘दाक्षायण’ इसका पैतृक नहीं, बल्कि ‘दैशिक’ नाम मानते है, एवं इसे दाक्षायण देश का रहनेवाला बतातें है । मत्स्य में दाक्षि को अंगिराकुलोत्पन्न ब्राह्मण कहा गया है
[मत्स्य. १९५.२५] ।
व्याडि दाक्षायण n. शौनक के ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ में वैदिक व्याकरण के एक श्रेष्ठ आचार्य के नाते व्याडि का निर्देश अनेक बार मिलता है, जिससे प्रतीत होता है किं, यह शौनक के शिष्यों में से एक था । अपने ‘विकृतवल्ली’ ग्रंथ के आरंभ में इसने आचार्य शौनक को नमन किया है ।
व्याडि दाक्षायण n. व्याडि वैदिक व्याकरण का ही नहीं, बल्कि पाणिनीय व्याकरण का भी श्रेष्ठ भाष्यकार था -- रसाचार्यः कविर्व्याडिः शब्दब्रह्मैकवाङ्मुनिः। दाक्षीपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसाग्रणिः ।
[समुद्रगुप्तकृत ‘कृष्णचरित’ १६] । (संग्रहकार व्याडि पाणिनि के अष्टाध्यायी का (‘दाक्षीपुत्रवचन’) का श्रेष्ठ व्याख्याता, रसाचार्य, एवं मीमांसक था ।) इसके ‘मीमांसाग्रणि’ उपाधि से प्रतीत होता है कि, इसने मीमांसाशास्त्र पर भी कोई ग्रंथ लिखा होगा। पंतजलि के व्याकरण-महाभाष्य में इसे ‘द्रव्यपदार्थवादी’ कहा गया है
[महा. १.२.६४] । अष्टाध्यायी में भी ‘व्याडिशाला’ शब्द का निर्देश प्राप्त है, जिसका संकेत संभवतः इसीके ही विस्तृत शिष्यशाखा की ओर किया गया होगा
[पा. सू. ६.२.८६] ।
व्याडि दाक्षायण n. व्याडि के द्वारा रचित ग्रन्थों में ‘संग्रह’ श्रेष्ठ ग्रन्थ माना जाता है, किन्तु वह वर्तमानकाल में अप्राप्य है । इस ग्रंथ के जो उद्धरण उत्तरकालीन ग्रंथों में लिये गये है, उन्हींसे ही उसकी जानकारी आज प्राप्त हो सकती है । पतंजलि के व्याकरण-महाभाष्य के अनुसार, यह व्याकरण का एक श्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ था, जिसकी रचनापद्धति पाणिनीय अष्टाध्यायी के समान सूत्रात्मक थी
[महा. ४.२.६०] । इस ग्रंथ में चौदह सहस्त्र शब्दरूपों की जानकारी दी गयी थी
[महा. १.१.१] । चांद्र व्याकरण में प्राप्त परंपरा के अनुसार, इस ग्रंथ के कुल पाँच अध्याय थे, एवं उनमें १ लक्ष श्र्लोक थे
[चांद्रव्याकरणवृत्ति. ४.१६१] ।
व्याडि दाक्षायण n. आधुनिक अभ्यासकों के अनुसार, यास्क, शौनक, पाणिनि, पिंगल, व्याडि, एवं कौत्स ये व्याकरणाचार्य प्रायरु समकालीन ही थे । इनमें से शौनक के द्वारा विरचित ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ का रचनाकाल २८०० ई. पू. माना जाता है । व्याडि का काल संभवतः यही होगा (युधिष्ठिर मीमांसक, पृ. १३९) ।
व्याडि दाक्षायण n. इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त हैः- १. संग्रह. २. विकृतवल्ली. ३. व्याडिव्याकरण. ४. बलरामचरित. ५. व्याडि परिभाषा ६. व्याडिशिक्षा (C.C) गरुडपुराण के अनुसार, इसने रत्नविद्या के संबंध में भी एक ग्रंथ की रचना की थी
[गरुड. १.६९.३७] ।