निक्षुभा n. स्वर्गलोक की एक अप्सरा । सूर्य के शाप के कारण, इसे मृत्युलोक में जन्म प्राप्त हुआ, एवं सुजिह्र नामक मिहिर गोत्रीय सदाचारी ब्राह्मण के घर, कन्यारुप से इसका जन्म हुआ । अपने पिता की आज्ञानुसार, यह हमेशा अग्नि प्रज्वलित कर लाया करती थी । एक दिन, इसके हाथ में स्थित अग्नि भडक उठा, एवं उसकी फडकती ज्वाला में, इसका अपूर्व रुपयौवन सूर्य को दिख पडा । सूर्य को इसके प्रति कामवासना जागृत हुई । पश्चात् सूर्य मनुष्यरुप धारण कर, सुजिह्र के पास आया, एवं कहने लगा, ‘मैंने निक्षुभा का पाणिग्रहण किया है, एवं मुझसे उसे गर्भधारणा भी हुयी है’। फिर क्रुद्ध हो कर सुजिह्र ने निक्षुभा को शाप दिया, ‘तुम्हारा गर्भ अग्नि से आवृत होने के कारण, तुम्हारी होनेवाली संतति, लोगों के लिये निंद्य एवं तिरस्करणीय होगी’। फिर सूर्य अग्नि का रुप धारण कर, निक्षुभा के पास आया एवं उसने इसे कहा, ‘तुम्हारी संतति अपूज्य होने पर भी, वह सद्विद्य एवं सदाचारी रहेंगी, एवं मेरी पूजा का अधिकार उसे प्राप्त होगा । बाद में इसे सूर्य की गर्भ से अनेक पुत्र हुएँ । मग, द्विजातीय, भोजक आदि उनके नाम थे, एवं शाकद्वीप में वे रहते थे । पश्चात् कृष्णपुत्र सांब ने, उन्हे जम्बुद्वीप में से सांबपुर में स्थित सूर्यमंदिर में पूजाअर्चा का काम करने के लिये, नियुक्त किया । उनके साथ, उनके अठारह कुल सांबपुर में आये वं बस्ती बना उधर ही रहने लगे । सांब ने भोजकुल में पैदा हुई कन्याएँ उन्हे प्रदान की
[भवि.ब्राह्म.१३९-१४०] ; मग देखिये । भविष्यपुराण में दी गयी सूर्यवंशेय एवं मिहिरकुलीय लोगों की यह कथा रुपकात्मक प्रतीत होती है । शुरु में जातिबहिष्कृत मानें गये वे लोग, बाद में आनर्त देश के भोजवंश में सम्मीलित हो गये से दिखते है ।