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पु. १ या नावांचा एक दैत्य . यास शंकराने मारले . २ त्रिपुरासुराची तीन नगरे . - शर . त्रिगुण त्रिपुरी वेढिला । - ज्ञा १७ . २ . ३ कार्तिकी पौर्णिमेस देवापुढे दीपमाळेवर अथवा इतरत्र कापूर इ० कांचा लावतात तो मोठा दिवा . ४ शिवरात्रीस स्त्रिया शंकरापुढे लावितात त्या वाती , दिवे . ५ देवळासमोर उभारलेला दीपस्तंभ , दीपमाळ . [ सं . ] - रारि - पु . त्रिपुराचा नाश करणारा ; शंकर . नेणो कै श्रीत्रिपुरारी । सांगितले जे । - ज्ञा १८ . १७५१ . [ सं . त्रिपुर + अरि = शत्रु ] त्रिपुरी पुनवपौर्णिमा - स्त्री . कार्तिकी पौर्णिमेस देवालयांत त्रिपुर लावून करतात तो दीपोत्सव . [ त्रिपुर + उत्सव ]
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त्रि—पुर n. n.
sg. id. (built of gold, silver, and iron, in the sky, air, and earth, by मय for the असुरs, and burnt by शिव, [MBh.] &c.; cf. [TS. vi, 2, 3, 1] ), [ŚBr. vi, 3, 3, 25] ; [AitBr. ii, 11] ; [ŚāṅkhBr.] , N. of an Up.
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न. एक प्रांत . याचे आधुनिक नांव टिप्पेरा असे आहे .
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त्रिपुर n. एक असुरेसंघ । मयासुर ने ब्रह्माजी के प्रसाद से तीन पुरों (नगरों) की रचना की । उन पुरों क्रमशः लोहमय, रौप्यमय, एवं सुवर्णमय थे । नगर पूर्ण होने के पश्चात्, उनका अधिपत्य तारकासुर के ताराक्ष, कमलाक्ष एवं विद्युन्मालि इन तीन पुत्रों को दिया गया [म.क.२४.४] । ये तीन असुर ‘त्रिपुर’ नाम से प्रसिद्ध हुएँ । मयासुर ने नगर निर्माण कर असुरों को दिये । उस समय उसने त्रिपुरों को चेतावनी दी कि, ‘तुम्हें देवताओं को न तो त्रस्त, करना चाहिये, नहीं तो उनका अनादर करना चाहिये’। किंतु बाद में विपरीत बुद्धि हो कर, त्रिपुर अधर्माचरण करने लगे । इसलिये शिवजी के हाथ से इनका नाश हुआ । यह अधर्माचरण विष्णु ने इनमें फैलाया [शिव.रुद्र.४.५] । त्रिपुरों में धार्मिकता होने के कारण, उनपर विजयप्राप्ति असंभव थीं । इसलिये विष्णु ने बुद्ध के रुप में इन पुरों को धर्मरहित किया । बाद में देवों ने युद्ध प्रारंभ किया [मत्स्य.१३०-१३७] ;[भा.७.१०] ;[म.अनु.२६५.३१ कुं.] इनसे युद्ध करते समय शंकर के शरीर से जो घर्मबिंदु निकले, वे ही रुद्राक्ष बने [पद्म. सृ.५९] । जिन अमृतकुंडों के कारण ये अमर थे, उनका प्राशन देवताओं ने गोरुप से कर लिया । पश्चात् शिवजी ने त्रिपुर का दहन किया [पद्म.सृ.१३] । इसी समय ताराक्ष, कमलाक्ष तथा विद्युन्मालि असुरों का अंत हुआ [म.द्रो.१७३.५२-५८] ;[लिंग. १.७०-७२] ।
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