द्वादशराशिगतग्रहफल
जिसके शनि जन्मसमय मेषराशिमें स्थित होय वह धनहीन, दुर्बल शरीरवाला, जनोंसे विरोधके कारण चिंतित कार्य नाशको प्राप्त और सुजनोंकरके विषमता समता शमनको प्राप्त होवे जिसकी ऐसा मनुष्य होता है । जिसके वृषराशिमें शनि बैठा होय वह स्त्रीसुखसे रहित और चुगुलखोरोंका संग रखनेवाला, बुद्धीहिन और सुतोत्सवकरके रहित होता है । जिसके मिथुनराशिमें शनि बैठा होय वह प्रबलता विमलत्वकरके रहित, घरसे बाहर हास्य विलास करनेवाला और दुःख पानेवाला होता है । जिसके कर्कराशिमें शनि बैठा होय वह दुर्बलशरीरवाला, मातृसुखसे रहित, उत्तम विलासदायक स्त्रीवाला और शत्रुओंका जीतनेवाला होता है ॥१-४॥
जिसके सिंहराशिमें शनि बैठा होय वह लिखनेमें बडा प्रवीण और सब जनोंसे कलह करनेवाला, उत्तम शील स्वभावकरके रहित हतसुतोंवाला, स्त्रीसे दुःख पानेवाला होता है । जिसके कन्याराशिमें शनि बैठा होय वह श्रेष्ठ कर्मसें रहित, दुष्टशील और मित्रोंसे विरोध करनेवाला और निर्बल शरीरवाला होता है । जिसके तुलाराशिमें शनि बैठा होय वह राजबलकरके युक्त, कामी, दानी और राजासे उपकार पानेवाला होता है । जिसके वृश्चिकराशिमें शनि बैठा होय वह विषसे, अग्नि और शस्त्रसे भय पानेवाला, धन नाश करनेवाला, शत्रुसे रोगसे दुःख पानेवाला और कलहके कारण विकल होता है ॥५-८॥
जिसके धनराशिमें शनि बैठा होय वह पुत्रादिकोंकरके पूर्ण मनोरथवाला, प्रसिद्ध, कीर्ति और उत्तम वृत्तिवाला होता है और विभवसमेत निरन्तर सुखी रहता है । जिसके मकरराशिमें शनि बैठा होय वह राजाके समान गौरवको प्राप्त होता है और अगरु कुसुमादि सुगंध लेपनसे प्रसन्न चित्तवाला और सुखी होता है । जिसके कुंभराशिमें शनि बैठा होय वह शत्रुओंको जीतनेवाला, व्यसनी, विहितकर्मसे पराङमुख रहनेवाला और प्रसन्नताकरके युक्त होता है । जिसके मीनराशिमें शनैश्चर बैठा होवै वह विनयता और व्यवहारसुशीलतारके संपूर्ण गुणोंको ग्रहण करनेवाला, उपकारमें निपुण और विभवकरके युक्त होता है ॥९-१२॥