जिसके मेषराशि तीसरे भावमें स्थित होय वह ब्राह्मण मित्रवाला, परोपकार करके तथा श्रवणकरके पवित्र, अधिक विद्यावाला और राजपूजित होता है । जिसके तीसरे भावमें वृषराशि स्थित होय वह मित्र राजाको पानेवाला, अधिक प्रतापवाला, अधिक वित्त ( धन ) दायक, अधिक यशस्वी, पंडित, कवि और ब्राह्मणमें रत चित्तवाला होता है । जिसके तीसरे भावमें मिथुन राशि स्थित होय वह वर ( श्रेष्ठ ) सवारी करके युक्त, स्त्रियोंका प्यारा, सत्य बोलनेवाला, उदार चेष्टावाला, अधिक कुलवाला और राजाओंका पूज्यतम होता है ॥१-३॥
जिसके कर्कराशि तृतीयभावमें स्थित होय वह वैश्य मित्रवाला, खेतीके बलवाला, धर्मकथामें रत रहनेवाला, सदा सुशीलवान् और हर्ष करके युक्त होता है । जिसके सिंहराशि तीसरे भावमें स्थित होय वह शूर, दुष्ट मित्रवाला, अधिक धनका लोभी, वधिक, पापवार्तामें रत, प्रचंड वाणीवाला और गर्वकरके रहित होता है ॥४॥५॥
जिसके कन्याराशि तीसरे भावमें स्थित होवे वह शस्त्रोमें रत, सुंदर, शीलवान्, बहुत मित्रोंवाला , अधिक क्रोधवान, ब्राह्मणका प्यार करनेवाला, देवता और गुरुका भक्त होता है । जिसके तुलाराशि तीसरे भावमें स्थित हो वह दुष्टजनोंसे मित्रतावला, विषयी और विषयके वार्तामें रत रहनेवाला, थोडी संतानवाला और मनुष्योंकरके सहित होता है । जिसके वृश्चिकराशि तीसरे भावमें पडे वह दुष्ट और दरिद्री जनोंकी मित्रतावाला, हिंसा करनेवाला, कलहमें अनुरक्त, व्यपेतलक्ष और जनविरुद्धताकरके संयुक्त होता है । जिसके तीसरे भावमें धनु राशि होवे वह योद्धाजनोंकी मित्रतावाला, राजाका सेवक स्वधर्मकरके प्रसन्नचित्तवाला, दयावान् और रणमें चतुर होता है ॥६-९॥
जिसके मकरराशि तीसरे भावमें स्थित हो वह सदा सुतआदिकरके युक्त, सुशील, सदा मित्र, देवता और गुरुकी भक्तिमें तत्पर बहुत धनवान् और पंडित होता है । जिसके तीसरे भावमें कुंभ राशि पडी हो वह नियमको जाननेवाला और बहुत कीर्तिमान् मनुष्योंकी मित्रतावाला, अधिक क्षमवान्, सत्यवादी, सुंदरशीलवाला, गान विद्यासे प्यार करनेवाला, ग्रामाधिकारी और खल होता है । जिसके मीनराशि तीसरे भावमें स्थित हो वह बहुत धनकरके संयुक्त, पुत्रसहित तथा पुण्य धनको संग्रह करनेवाला, प्रिय अतिथिवाला और सर्वजनोंका प्यारा होता है ॥१०-१२॥