जिसके जन्मसमयमें मेषराशि छठे भावमें पडे उस मनुष्यको सदा वैर होता है और जिसके वृषराशि छठे भावमें पडे उसको अपने बंधुवर्गमें तथा अपत्यमार्गमें प्राप्त स्त्रियोंके संगकरके वैर प्राप्त होता है । जिसके मिथुनराशि छठे भावमें स्थित हो उसको स्त्रीजनित तथा पापीजनों, वणिग्जनों और नीचजनोंकी संगति करके वैर प्राप्त होता है । जिसके कर्कराशि छठे भावमें स्थित हो उसको अकस्मात् कभी भय होजावे और ब्राह्मणों राजाओं और महाजनों तथा दूसरोंकी मित्रतासे समभाव प्राप्त होता है ॥१-३॥
जिसके सिंहराशि छठे भावमें स्थित होय उसे बंधुजनकरके पैदा कियेहुए धन भूमिके निमित्त अथवा स्त्रियोंकरके सदा शत्रुता होती है । जिसके कन्याराशि शत्रुभावमें स्थित हो उसको अपने जनोंकी संगतिसे अथवा दुश्चारिणी तथा गंभीर नाभिवाली और आश्रयरहित वेश्याओंकरके वैर होता है । जिसके तुलाराशि छठे भावमें स्थित होवें उसको धरेहुए धनके कारण धर्मके कार्यहेतु बंधुवगोंसे अपने स्थानसे वैर प्राप्त होता है ॥४-६॥
जिसके वृश्चिकराशि छठे भावमें स्थित हो उसको दो जिह्वावालों अर्थात् चुगुलखोर और सापोंके साथ, सिंह, मृग और चोरोंकरके, धान्य करके और विलासिनी स्त्रियोंकरके वैर प्राप्त होता है । जिसके धनुराशि छठे भावमें स्थत हो उसको शरसंयुक्त सरागकोंसे, घोडों हाथियोंसे, पुण्यकरके तथा दूसरोंके बंचनासे वैर होता है । जिसके प्रकरराशि छठे भावमें स्थित हो उसको धनगृहसंबंधी बहुतकाल साधुजनोंकी सहायतासे मित्रकरके वैर होता है ॥७-९॥
जिसके कुंभराशि छठे भावमें स्थित हो उसको बलवान् राजाकरके, जलाश्रयकरके, बावडी तडागादिकरके, क्षेत्राधिपकरके और श्रेष्ठपुरुषकरके भय होता है । जिसके मीनराशि छठे भावमें स्थित हो उसे सदा सुतवस्त्रजात स्त्रीहेतु अपनी एवं पराई संपदाके निमित्त शत्रुता होता है ॥१०॥११॥