जिसके जन्मकालमें छठे भावका स्वामी लग्नमें स्थित होय वह रोगरहित, बलयुक्त, कुटुंबियोंको कष्ट करनेवाला, बहुत यत्न करनेवाला, शत्रुओंको हित करनेवाला, अपनी इच्छासे करनेवाला और अपने धनवाला होता है । जिसके दूसरे स्थानमें छठे भावका स्वामी स्थित होय वह दुष्ट, चतुर, संग्रह करनेमें श्रेष्ठ, बहुत स्थानोंमें प्रसिद्ध, व्याधिसे युक्त शरीरवाला और भाईके धनको हर लेनेवाला होता है । जिसके षष्ठभावका स्वामी तीसरे स्थानमें स्थित होय वह श्रेष्ठ लोकोंको कष्ट देनेवाला, अपने जनोंको मारनेवाला और संग्रामसे कष्ट पानेवाला होता है । जिसके छठे भावका स्वामी चतुर्थ स्थानमें स्थित होय वह पिता पुत्र परस्पर वैर करनेवाले होते हैं और तिसका पिता अथवा पुत्र रोगी होता है और चिरकाल स्थित होनेवाली लक्ष्मीको पाता है ॥१-४॥
जिसके छठे भावका स्वामी पंचमस्थानमें स्थित होय तब पिता पुत्रोंका परस्पर वैर होता है और पुत्रसे पिता मरता है. यदि क्रूरग्रह होवे और शुभग्रह होनेसे धनहीन, दुष्ट पदवीवाला और कपटी मनुष्य होता है । जिसके छठे भावका स्वामी छठे भावमें स्थित होय वह रोगसे हीन और शत्रुओंसे सुखवाला, कृपणरुप जन्महीसे खेदको नहीं प्राप्त और खोटे स्थानमें निवास करनेवाला होता है । जिसके छठे भावका स्वामी क्रूरग्रह होकर सातवें स्थानमें स्थित होय तिसकी स्त्री विरोध करनेवाली, अतिक्रोधवाली, संतापके करनेवाली होती है और शुभग्रह होनेसे वंध्या वा गर्भपात करके युक्त होती है । जिसके अष्टमभावमें षष्ठेश शनि स्थित होय उसके संग्रहणी रोग होता है, मंगलसे सर्प करके मृत्यु होती है, बुधसे विषदोषद्वारा मृत्यु होती है, चन्द्रमा शीघ्र मृत्यु करता है, सूर्य होय तो सिंह करके मृत्यु होती है, बृहस्पति होय तो वह दुष्टबुद्धिवाला और शुक्र होय तो नेत्रदोषवाला होता है ॥५-८॥
जिसके छठे स्थानका स्वामी नवम भावमें स्थित होय और क्रूरग्रह होय तो वह खंजरोगवाला, बंधु विरोधी, शास्त्रका न माननेवाला और भिखारी होता है । जिसके दशमस्थानमें छठे भावका स्वामी क्रूरग्रह होकर स्थित होवे तब वह माताका शत्रु और दुष्ट धर्म, पुत्रके पालनमें बुद्धिवाला और माताका दोषी तथा वैरी होता है । जिसके छठे भावका स्वामी क्रूरग्रह ग्यारहवें भावमें स्थित होवे तब उसका शत्रुकरके मरण होता है. शत्रु तथा चोर करके हानिवाला और चतुष्पदोंसे लाभवाला मनुष्य होता है । जिसके छठे भावका स्वामी बारहवें घरमें स्थित होय वह चतुष्पदोंसे धनहानिवला, गमनागमनमें लक्ष्मी हानिवाला और देवताको पूजनेवाला होता है ॥९-१२॥
इति षष्ठेशफलम् ।