रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक ७

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


सुदिन साँझ पोथी नेवति, पूजि प्रभात सप्रेम ।

सगुन बिचारब चारु मति , सादर सत्य सनेम ॥१॥

( अब शकुन विचारकी विधि बतला रहे हैं- ) किसी शुभ दिन संध्याके समय पुस्तकको निमंत्रण देकर ( कि कल आप मुझे मेरे प्रश्नका उत्तर देनेकी कृपा करें ) प्रातः- काल प्रेमपूर्वक उसकी पूजा करके बुद्धिमान् पुरुषको आदरपूर्वक शकुनको सत्य मानकर ( ग्रन्थके प्रारम्भमें भूमिकामें बताये ) नियमोंके अनुसार शकुनका विचार करना चाहिये ॥१॥

( यदि प्रश्‍न करनेपर यही दोहा निकले तो वह प्रश्‍न फिर करना चाहिये । )

मुनि गनि दिन गनि धातु गनि दोहा देखि बिचारि ।

देस करम करता बचन सगुन समय अनुहारि ॥२॥

मुनि ( सात ), दिन ( सात ) तथा धातु ( सात ) अर्थात सात सर्ग; प्रत्येक सर्गके सात- सात सप्तक तथा प्रत्येक सप्तकके सात-सात दोहे गिनकर, दोहेको देखकर फलका विचार करो । देश, कर्म तथा प्रश्‍नकर्ताके वचनके अनुसार उस समय शकुन होगा ॥२॥

( जैसे शब्दोमें प्रश्‍न पूछा गया हैं, जिस कर्मके सम्बन्धमें पूछा गया है, जिस समय और जिस स्थानमें पूछा गया है, सबका प्रभाव देखकर प्रश्‍नका फल कहना चाहिये । यदि यहि दोहा प्रश्‍न करनेपर निकले तो फिर वही प्रश्‍न करना तथा फल देखना चाहिये । )

सगुन सत्य ससि नयन गुन, अवधि अधिक नयवान ।

होइ सुफल सुभ जासु जसु, प्रीति प्रतीति प्रमान ॥३॥

चन्द्रमा ( एक ), नेत्र ( दो ), गुण ( तीन -) नीतिमान्‌के लिये सच्चे शकुनकी यह अधिक-से-अधिक सीमा है । ( एक दिन तीनसे अधिक प्रश्‍न न करे ।) जिसका जैसा प्रेम और विश्वास है, उसीके अनुसार शकुन शुभ तथा सफल होगा ॥३॥

( प्रश्‍न-फल मध्यम है । )

गुरु गनेस हर गौरि सिय राम लखन हनुमान ।

तुलसी सादर सुमिरि सब सगुन बिचार बिधान ॥४॥

तुलसीदासजी कहते हैं- गुरुदेव, गणेश, श्रीगौरी-शंकर, श्रीसीता-राम तथा लक्ष्मणजी और हनुमान्‌जीका आदरपूर्वक स्मरण करके सब प्रकारके शकुनका विधिपूर्वक विचार करना चाहिये ॥४॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

हनुमान सानुज भरत राम सीय उर आनि ।

लखन सुमिरि तुलसी कहत सगुन बिचारु बखानि ॥५॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि ( पहिले ) श्रीहनुमान्‌जी, छोटे भाई शत्रुघ्नके साथ, भरतजी, श्रीसीतारामजी और लक्ष्मणजीको हृदयमें ले आओः इनका स्मरण करके तब शकुनका विचार करके फल बताओ ॥५॥

( फल उत्तम है । )

जो जेहि काजहि अनुहरइ, सो दोहा जब होइ ।

सगुन समय सब सत्य सब, कहब राम गति जोइ ॥६॥

जो जिस कार्यके लिये प्रश्‍न करता है, वही उसी ( कार्यसम्बन्धी ) दोहा जब हो , तब उस शकुनके समय जो पूछा गया है, वह सब पूर्ण सत्य होगा । श्रीरामजीकी गति ( इच्छा-कॄपा ) पर भरोसा करके ( प्रश्‍नफल ) कहना चाहिये ॥६॥

( प्रश्‍न-फल सन्दिग्ध है । )

गुन बिस्वास बिचित्र मनि सगुन मनोहर हारु ।

तुलसी रघुबर भगत उर बिलसत बिमल बिचारु ॥७॥

तुलसीदासने विश्वासरूपी तागेमें शकुनरूपी विचित्र मणियोंकी यह मनोहर माला बनायी है । श्रीरघुनाथजीके भक्तोंके हॄदयपर यह निर्मल विचारके रूपमें शोभित होती है । ( श्रीरामभक्तोंके हृदयमें यह शकुन-विचार विराजमान रहता है ।) ॥७॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

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Last Updated : January 22, 2014

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