रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक ५

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


बड़ कलेस कारज अलप, बडी़ आस लहु लाहु ।

उदासीन सीता रमन, समय सरिस निरबाहु ॥१॥

बडा़ कष्ट उठानेपर थोडा़-सा कार्य होगा, बडी़ आशा होगी, किन्तु लाभ थोडा़ होगा । श्रीसीतानाथ प्रभुकी ओरसे उदासीनता रहेगी , समयके अनुसार ( किसी प्रकार ) निर्वाहमात्र हो जायगा ॥१॥

दस दिसि दुख दारिद दुरित, दुसह दसा दिन दोष ।

फेरे लोचन राम अब, सनमुख साज सरोष ॥२॥

श्रीरामके अब नेत्र फेर लेने ( उदासीन हो जाने ) से दसों दिशाओंमें ( सर्वत्र ) दुःख दरिद्रता, पाप, असहनीय दशा प्राप्त होगी । दिनोंका दोष ( दुर्भाग्य ) क्रोध करके साज सजाकर सामने आ गया है ॥२॥

खेती बनिज न भीख भलि, अफल उपाय कदंब ।

कुसमय जानब बाम बिधि, राम नाम अवलंब ॥३॥

( इस समय ) न खेती करना अच्छा, न व्यापार करना और न भीख माँगना । सभी उपाय असफल होंगे, अभी बुरा समय आया समझो, विधाता प्रतिकूल है ।( इस समय ) राम-नाम ही ( एकमात्र ) सहारा है ॥३॥

पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम ।

सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ, सुमिरत सीताराम ॥४॥

श्रीसीता-रामके स्मरणसे स्वार्थके लिये किये गये मनुष्यके सभी प्रयत्न परमार्थमें परिणत हो जाते हैं तथा सभी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं । यह शकुन शुभ है ॥४॥

भानु भाग तजि भाल थलु, आलस ग्रसे उपाउ ।

असुभ अमंगल सगुन सुनि, सरन रामकें आउ ॥५॥

भाग्य ललाटका स्थान छोड़्कर भाग गया है ( सौभाग्यका समय रहा नहीं ) । उपायोंको आलस्यने ग्रस्त कर लिया है । ( प्रयत्न समयपर हो नहीं सकेगा । ) अमंगलकारी यह अशुभ शकुन सुनकर ( अब ) श्रीरामकी शरणमें आ जाओ ( वे ही रक्षा करनेमें समर्थ हैं । ) ॥५॥

ग‍इ बरषा करषक बिकल, सूखत सालि सुनाज ।

कुसमय कुसगुन कलह कलि, प्रजहि कलेसु कुराज ॥६॥

वर्षा चली जानेसे भली प्रकार जमा हुआ धान सुख रह है, किसान व्याकुल हो रहे हैं । यह अपशकुन बतलाता है कि बुरा समय रहेगा, लडा़ई-झगडा़ होगा, बुरे शासनके कारण प्रजाको कष्ट होगा ॥६॥

तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरहु लखन समेत ।

दिन दिन उद‍उ अनंद अब, सगुन सुमंगल देत ॥७॥

तुलसीदासजी ( अपने आपसे ) कहते हैं- तुलसीका तथा श्रीराम-जानकी एवं लक्ष्मणका स्मरण करो । अब दिनों-दिन अभ्युदय एवं आनन्द होगा । यह शकुन परम मंगलदायक है ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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