पय पावनि, बन भुमि भलि सैल सुहावन पीठ ।
रागिहि सीठ बिसोषि थलु बिषय बिरागिहि मीठ ॥१॥
पयस्विनी नदी पवित्र है, वन भुमि उत्तम है, चित्रकुट पर्वत सुहावना तथा देवस्थान स्वरुप है । यह स्थल संसारके भोगोंमें आसक्त लोगोंके लिये अत्यन्त नीरस है; परन्तु विषयोंसे विरक्त लोगोंके लिये मधुर । ( प्रिय ) है ॥१॥
( संसारिक कामना है तो असफलता और भजन पूजन सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता प्राप्त होगी । )
फटिक सिला मन्दाकिनी सिय रघुबीर बिहारा ।
राम भात हित सगुन सुभ भूतल भगति भँडार ॥२॥
मन्दाकिनी तटपर स्फटिकशिला श्रीसीतारामजीकी क्रीड़ाभूमि हैं । श्रीरामभक्तोंके लिये शकुन शुभ है । पृथ्वीपर ( इसी जन्ममें ) भक्तिका भण्डार ( श्रेष्ठ भक्ति ) प्राप्ति होगी ॥२॥
सगुन सकल संकट समन चित्रकूट चलि जाहु ।
सीता राम प्रसाद सुभ लघु साधन बड़ लाहु ॥३॥
यह शकुन समस्त संकटोकों दूर करनेवाला है । चित्रकुट चले जाओ, वहाँ श्रीसीतारामकी कृपासे भला होगा, थोडे़ साधनसे भी वहाँ बडा़ लाभ होगा ॥३॥
दिए अत्रि तिय जानकिहि बसन बिभुषन भूरि ।
राम कृपा संतोष सुख होहिं सकल दुख दुरि ॥४॥
महर्षि अत्रिकी पत्नी अनुसूयाजीने श्रीजानकीजीको बहुतसे वस्त्र और आभुषण दिये । श्रीरामकी कृपासे सन्तोष तथा सुख प्राप्त होंगे और सब दुःख दूर हो जायँगे ॥४॥
काक कुचालि बिराध बध देह तजी सरभंग ।
हानि मरन सूचक सगुन अनरथ असुभ प्रसंग ॥५॥
काक ( जयन्त ) ने कुचाल चली ( श्रीजानकीजीके चरणोंमें चोंच मारी ), विराध राक्षसको ( प्रभुने ) मारा, शरभंग ऋषिने ( प्रभुके सम्मुख ) शरीर छोडा़ । यह शकुन हानि, मृत्यु, अनर्थ और अशुभ अवसरोंके आनेका सूचक है ॥५॥
राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल मूल ।
सत समाज तब होइ जब रमा राम अनुकुल ॥६॥
श्रीराम लक्ष्मणके साथ मुनियोंका मिलन सुन्दर कल्याणका मूल है । जब श्रीराम जानकी अनुकुल सूचक सप्त्पूरुषोंका साथ होता हैं ॥६॥
( सत्संग प्राप्तिका सूचक शकुन है । )
मिले कुंभसंभव मुनिहिं लखन सीय रघुराज ।
तुलसी साधु समाज सुख सिद्ध दरस सुभ काज ॥७॥
श्रीलक्ष्मण तथा श्रीजानकीजीके साथ श्रीरघुनाथजी महर्षि अगस्त्यजीसे मिले । तुलसीदासजी कहते हैं कि साधुपुरुषोंके संगका सुख होगा तथा उनके दर्शनसे शुभ कार्य सफल होंगे ॥७॥