हंस बंस अवतंस जब कीन्ह बास पय पास ।
तापस साधम सिद्ध मुनि, सब कहँ सगुन सुपास ॥१॥
सूर्यवंशावतंस ( श्रीराम ) ने जब पयस्विनी नदीके पास निवास किया तब तपस्वी, साधक, सिद्ध, मुनिगण-सभीको सुख-सुविधा हो गयी । ऐसे लोगोंकी सुख सुविधा यह शकुन सूचित करता है ॥१॥
बिटप बेलि फुलहिं फलहिं जल थल बिमल बिसेषि ।
मुदित किरात बिहंग मृग मंगल मूरति देखि ॥२॥
वृक्ष और लताएँ फुलने-फलने लगीं, जल और स्थल विशेषरूपसे निर्मल हो गये । मंगल-मूर्ति श्रीरामको देखकर ( विनके ) किरात, पक्षी, पशु-सभी प्रसन्न हो गये ॥२॥
( प्रश्न - फल शुभ हैं । )
सींचति सीय सरोज कर बयें बिटप बट बेलि ।
समय सुकाल किसान हित सगुन सुमंगल केलि ॥३॥
अपने बोये वटवृक्ष एवं लताओंको श्रीजानकीजी अपने करकमलोंसे सींचती हैं । यह शकुन किसानके लिये सुकाल एंव आनन्दमयी क्रीडाका सूचक है ॥३॥
हय हाँके फिरी दखिन दिसि हेरि हेरि हिहिनात ।
भये निषाद बिषाद बस अवध सुमंतहि जात ॥४॥
सुमन्त्रजीने अयोध्या जाते समय घोडो़को हाँका तो ये । बार बार मुड़्कर दक्षिण दिशाकी और देख-देखकर हिनाहिनति हैं, इससें निषादलोग भी शोकसंतत्प हो गये ॥४॥
( प्रियवियोग तथा शोकसुचक शकुन है । )
सचिव सोच ब्याकुल सुनत असगुन अवध प्रबेस ।
समाचार सुनि सोक बस माँगी मीचु नरेस ॥५॥
अयोध्यामें प्रवेश करते समय ( सियारोंका रोना आदि ) अमंगल सूचक शब्द होते सुनकर मन्त्री ( सुमन्त्र ) शोकसे व्याकुल हो गये । उनसे ( श्रीरामका ) समाचार सुनकर शोकविवश महाराज दशरथने मृत्यु माँगी ॥५॥
( प्रश्न फल अशुभ है । )
राम राम कहि राम सिय राम सरन भये राउ ।
सुमिरहु सीताराम अब, नाहिन आन उपाउ ॥६॥
महाराज दशरथ राम-राम सीता - राम कहकर श्रीरामकी शरण चले गये ( देह त्याग दिया ) अब ( तुम भी ) श्रीसीतारामका स्मरण करो, ( घरो संकटसे बचनेका ) दुसरा कोई उपाय नहीं है ॥६॥
राम बिरहँ दसरथ मरनु, मुनि मन आगम सुमीचु ।
तुलसी मंगल मरन तरु, सुचि सनेह जल सींचु ॥७॥
श्रीरामके वियोगमें महाराज दशरथकी मृत्यु ऐसी उत्तम मृत्यु है कि ( ऐसा उत्तम मृत्युकी प्राप्ति ) मुनियोंके मनके लिये भी अगम्य ( अचिन्य ) है । तुलसीदासजी कहते है कि ऐसी मंगलमयी मृत्युके वृक्षको प्रेमके पवित्र जलसे सींचो ॥७॥
( शकुन शुभ मृत्यु उत्तम गतिका सूचक है । )