( ११ ) पर्णकृच्छ्र - नित्य स्त्रानसे पहले पञ्चगव्य - स्त्रान करके पहले ३ दिन उपवास, फिर ५ दिनतक प्रतिदिन पलास, गूलर, पद्म, बेल और कुश - इनके पत्तोंको जलमें उबालकर या इनमेंसे एक - एकको प्रतिदिन उबालकर पीनेसे ' पर्णकृच्छ्र ' होता है ।
पत्रैर्मतः पर्णकृच्छ्रः । ( मार्कण्डेय )
( १२ ) पद्मकृच्छ्र - पद्मके पत्तोंको उबालकर प्रतिदिन एक मास पीनेसे ' पद्मकृच्छ्र ' ४ होता है ।
पद्मपत्रैः पद्मकृच्छ्रः ।
( १३ ) पुष्पकृच्छ्र - पुष्पोंको उबालकर एक मास पीनेसे ' पुष्पकृच्छ्र ' ५ होता है ।
पुष्पैस्तत्कृच्छ्र उच्यते । "
( १४ ) फलकृच्छ्र - फलोंको उबालकर उनका जल एक मास पीनेसे ' फलकृच्छ्र ' ६ होता है ।
फलैर्मासेन क्वथितः फलकृच्छ्रो मनीषिभिः । "
( १५ ) मूलकृच्छ्र - उक्त वृक्षोंके मूलको उबालकर उसका जल एक मास पीनेसे ' मूलकृच्छ्र ' १ होता है । इन पर्ण, पद्म, पुष्प, फल और मूलोंका जल प्रतिदिन तैयार करना चाहिये । यह नहीं कि एक दिन इकट्ठा उबालकर पात्रमें भर ले और प्रतिदिन पीता रहे ।
१. मूलकृच्छ्रः स्मृतो मूलैः । ( मार्कण्डेय )