( ६ )
कृच्छ्रातिकृच्छ्र
( धर्मशास्त्र ) - प्रातःकाल, सायंकाल और मध्याह्नकल - इनमें एक - एक बार जल पीकर २१ दिन व्रत करनेसे ' कृच्छ्रतिकृच्छ्र ' ३ होता है । यमका मत है कि यह न बने तो अतिकृच्छ्र करे ।
अब्भक्षस्तु त्रिभिः कालैः कृच्छ्रतिकृच्छ्रकः स्मृतः । ( गौतम )
( ७ )
तप्तकृच्छ्रव्रत
( मनु आदि ) - ३ दिन ६ पल गर्म घी और तीन दिन गर्म जल, ३ दिन ३ पल गर्म दूध, ३ दिन १ पल गर्म घी और तीन दिन गर्म वायु ( उबलते हुए जलकी भाप ) पीनेसे; या ३ पल गर्म जल, २ पल गर्म दूध और १ पल गर्म घी ३ - ३ दिन पीने और ३ उपवास करनेसे; अथवा तीनोंको एक साथ गर्म करके १ दिन पीने और १ दिन उपवास करनेके ' तप्तकृच्छ्र ' ४ होता है । इसमें पहला मत मनुका है ।
तप्तकृच्छ्रं चरन् विप्रो जलक्षीरघृतानिलान् ।
प्रतित्र्यहं पिबेदुष्णान् सकृत्स्त्रायी समाहितः ॥ ( मनु )
( ८ )
शीतकृच्छ्रव्रत
( मनु - याज्ञवल्क्य आदि ) - इसमें ३ दिन उक्त प्रमाणका ठंडा जल, ३ दिन ठंडा दूध और तीन दिन ठंडा घी पीनेसे और यदि सामर्थ्य न हो तो १ -१ दिन पीनेसे ' शीतकृच्छ्र ' होता है ।
त्र्यहं शीतं पिबेत्तोयं त्र्यहं शीतपयः पिबेत् ।
त्र्यहं शीतं घृतं पीत्वा वायुभक्षः परं त्र्यहम् ॥ ( यम )
( ९ )
पर्णकूर्चव्रत
( धर्मशास्त्र ) - पलास, गूलर, पद्म, बेलपत्र और कुशपत्र - इन सबको एक साथ उबालकर ३ दिन पीनेसे ' पर्णकूर्च ' होता है ।
पालाशादीनि पत्राणि त्रिरात्रोपोषितः शुचिः ।
क्वाथयित्वा पिबेदद्भिः पर्णकूर्चोऽभिधीयते ॥ ( यम )
( १० )
ब्रह्मकूर्चव्रत
( धर्मशास्त्र ) - पहले ३ दिन उपवास करके फिर पलास, गूलर, पद्म, बेलपत्र और कुश - इनके उबलते हुए भापको पीनेसे ' ब्रह्मकूर्च ' होता है ।