किसी पर्वत के एक भागे में बन्दरों का दल रहता था । एक दिन हेमन्त मास के दिनों में वहां इतनी बर्फ पड़ी और ऐसी हिमवर्षा हुई कि बन्दर सर्दी के मारे ठिठुर गए ।
कुछ बन्दर लाल फलों को ही अग्नि-कण समझ कर उन्हें फूकें मार-मारकर सुलगाने की कोशिश करने लगे ।
सूचीमुख पक्षी ने तब उन्हें वृथा प्रयत्न से रोकते हुए कहा---"ये आग के शोले नहीं, गुज्जाफल हैं । इन्हें सुलगाने की व्यर्थ चेष्टा क्यों करते हो ? अच्छा तो यह है कि कहीं गुफा-कन्दरा देखकर उसमें चले जाओ । तभी सर्दी से रक्षा
होगी ।"
बन्दरों में एक बूढा़ बन्दर भी था । उसने कहा----"सूचीमुख ! इनको उपदेश न दे । ये मूर्ख हैं, तेरे उपदेश को नहीं मानेंगे बल्कि तुझे पकड़कर मार डालेंगे ।"
वह बन्दर यह कह ही रहा था कि एक बन्दर ने सूचीमुख को उसके पंखों से पकड़ कर झकझोर दिया ।
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इसीलिए मैं कहता हूँ कि मूर्ख को उपदेश देकर हम उसे शान्त नहीं करते, और भी भड़काते हैं । जिस-तिस को उपदेश देना स्वयं मुर्खता है । मूर्ख बन्दर ने उपदेश देने वाली चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिया था ।
दमनक ने पूछा----"कैसे ?"
करटक ने तब बन्दर और चिड़ियों की यह कहानी सुनाई----