एक तालाब में तीन मछलियां थीं; अनागत विधाता, प्रत्युत्पन्न मति और यद्भविष्य । एक दिन मछियारों ने उन्हें देख लिया और सोचा ---"इस तालाब में खूब मछलियां हैं । आज तक कभी इसमें जाल भी नहीं डाला है, इसलिये यहां खूब मछलियां हाथ लगेंगी ।’ उस दिन शाम अधिक हो गई थी, खाने के लिये मछलियाम भी पर्याप्त मिल चुकी थीं, अतः अगले दिन सुबह ही वहां आने का निश्चय करके वे चले गये ।
’अनागत विधाता’ नाम की मछली ने उनकी बात सुनकर सब मछलियों को बुलाया और कहा ----"आपने उन मछियारों की बात सुन ही ली है, अब रातों-रात ही हमें यह तालाब छोड़कर दूसरे तालाब में चले जाना चाहिये । एक क्षण की भी देर करना उचित नहीं ।"
’प्रत्युत्पन्नमति’ ने भी उसकी बात का समर्थन किया । उसने कहा----"परदेस में जाने का डर प्रायः सबको नपुँसक बना देता है । ’अपने ही कूएँ का जल पीयेंगे’ ---यह कह कर जो लोग जन्म भर खारा पानी पीते हैं, वे कायर होते हैं । स्वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती ।"
उन दोनों की बातें सुनकर ’यद्भविष्य’ नाम की मछली हंस पड़ी । उसने कहा----"किसी राह-जाते आदमी के वचनमात्र से डर कर हम अपने पूर्वजों के देश को नहीं छोड़ सकते । दैव अनुकूल होगा तो हम यहां भी सुरक्षित रहेंगे, प्रतिकूल होगा तो अन्यत्र जाकर भी किसी के जाल में फँस जायंगे । मैं तो नहीं जाती, तुम्हें जाना हो तो जाओ ।"
उसका आग्रह देखकर ’अनागत विधाता’ और ’प्रत्युत्पन्नमति’ दोनों सपरिवार पास के तालाब में चली गई । ’यद्भविष्य’ अपने परिवार के साथ उसी तालाब में रही । अगले दिन सुबह मछियारों ने उस तालाब में जाल फैला कर सब मछलियों को पकड़ लिया ।
इसीलिये मैं कहती हूँ कि ’जो होगा, देखा जायगा’ की नीति विनाश की ओर ले जाती है । हमें प्रत्येक विपत्ति का उचित उपाय करना चाहिये ।"
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यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा----मैं ’यद्भविष्य’ जैसा मूर्ख और निष्कर्म नहीं हूँ । मेरी बुद्धि का चमत्कार देखती जा, मैं अभी अपनी चोंच से पानी बाहिर निकाल कर समुद्र को सुखा देता हूँ ।"
टिटिहरी----"समुद्र के साथ तेरा वैर तुझे शोभा नहीं देता । इस पर क्रोध करने से क्या लाभ ? अपनी शक्ति देखकर हमेम किसी से बैर करना चाहिये । नहीं तो आग में जलने वाले पतंगे जैसी गति होगी ।"
टिटिहरा फिर भी अपनी चोंचों से समुद्र को सुखा डालने की डीगें मारता रहा । तब, टिटिहरी ने फिर उसे मना करते हुए कहा कि जिस समुद्र को गंगा-यमुना जैसि सैंकड़ों नदियां निरन्तर पानी से भर रही हैं उसे तू अपने बूंद-भर उठाने वाली चोंचों से कैसे खाली कर देगा ?
टिटिहरा तब भी अपने हठ पर तुला रहा । तब, टिटिहरी ने कहा----"यदि तूने समुद्र को सुखाने का हठ ही कर लिया है तो अन्य पक्षियों की भी सलाह लेकर काम कर । कई बार छोटे २ प्राणी मिलकर अपने से बहुत बड़े जीव को भी हरा देते हैं; जैसे चिड़िया, कठफोड़े और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था ।
टिटिहरे ने पूछा----"कैसे ?"
टिटिहरी ने तब चिड़िया और हाथी की यह कहानी सुनाई ----