श्याम छबिपर मैं वारी वारी ॥
देवन माहीं इंद्र तुमहीं, हौ उडुगण बीच इंद्र उजियारी ।
सामवेद वेदनमें तुमहीं, हौ सुमेरु पर्वतन मझारी ॥
सरितन गंगा, वृक्षन पीपर, जल आशयमें सागर पारी ।
देव-ऋषिनमें नारद-स्वामी, कपिल मुनी सिद्धन सुखकारी ॥
उच्चैश्रवा हयनमें तुमहीं, गज ऐरावत तुमहिं मुरारी ।
गौवन कामधेनु, सर्पनमें बासुकि, बज्र आप हथियारी ॥
मृगन मृगेन्द्र, गरुड़ पक्षिनमें, तुमहीं मीन सदा जलचारी ।
रूपकुँवरि प्रभु छबिके ऊपर, तन मन धन सब है बलिहारी ॥