हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|गुरु नानक|भजन संग्रह १| काहे रे बन खोजन जाई । सर... भजन संग्रह १ राम सुमिर , राम सुमिर , ए... सब कछु जीवितकौ ब्यौहार । ... हौं कुरबाने जाउँ पियारे ,... मुरसिद मेरा मरहमी , जिन म... काहे रे बन खोजन जाई । सर... प्रभु मेरे प्रीतम प्रान प... अब मैं कौन उपाय करूँ ॥ ... या जग मित न देख्यो कोई । ... जो नर दुखमें दुख नहिं मान... यह मन नेक न कह्यौ करे । ... जगतमें झूठी देखी प्रीत । ... भजन - काहे रे बन खोजन जाई । सर... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajangurunanakगुरुनानकभजन भजन Translation - भाषांतर काहे रे बन खोजन जाई । सरब निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई ॥१॥ पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है, मुकर माहि जस छाई । तैसे ही हरि बसै निरंतर, घट ही खोजौ भाई ॥२॥ बाहर भीतर एकै जानों, यह गुरु ग्यान बताई । जन नानक बिन आपा चीन्हे, मिटै न भ्रमकी काई ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : December 20, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP