तेरा, मैं दीदार-दीवाना ।
घड़ी घड़ी तुझे देखा चाहूँ, सुन साहेबा रहमाना ॥
हुआ अलमस्त खबर नहिं तनकी, पीया प्रेम-पियाला ।
ठाढ़ होऊँ तो गिरगिर परता, तेरे रँग मतवाला ॥
खड़ा रहूँ दरबार तुम्हारे, ज्यों घरका बंदाजादा ।
नेकीकी कुलाह सिर दिये, गले पैरहन साजा ॥
तौजी और निमाज न जानूँ, ना जानूँ धरि रोजा ।
बाँग जिकर तबहीसे बिसरी, जबसे यह दिल खोज ॥
कह मलूक अब कजा न करिहौं, दिलहीसों दिल लाया ।
मक्का हज्ज हियेमें देखा, पूरा मुरसिद पाया ॥