सदा सोहागिन नारि सो, जाके राम भतारा ।
मुख माँगे सुख देत है, जगजीवन प्यारा ॥१॥
कबहुँ न चढ़ै रँडपुरा, जाने सब कोई ।
अजर अमर अबिनासिया, ताकौ नास न होई ॥२॥
नर-देही दिन दोयकी, सुन गुरुजन मेरी ।
क्या ऐसोंका नेहरा, मुए बिपति घनेरी ॥३॥
ना उपजै ना बीनसि, संतन सुखदाई ।
कहैं मलूक यह जानिकै,मैं प्रीति लगाई ॥४॥