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मोकहँ झूठेहु दोष लगावहिं ...

भजन - मोकहँ झूठेहु दोष लगावहिं ...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


मोकहँ झूठेहु दोष लगावहिं ।

मैया ! इन्हहिं बानि परगृहकी, नाना जुगुति बनावहिं ॥१॥

इन्हके लिये खेलिबो छाड़यों तऊ न उबरन पावहिं ।

भाजन फोरि, बोरि कर गोरस देन उरहनों आवहिं ॥२॥

कबहुँक बाल रोवाइ पानि गहि मिसकरि उठि-उठि धावहिं ।

करहिं आपु सिर धरहिं आनके बचन बिरंचि हरावहिं ॥३॥

मेरी टेव बूझि हलधरको संतत संग खेलावहिं ।

जे अन्याउ करहिं काहूको ते सिसु मोहि न भावहिं ॥४॥

सुनि-सुनि बचन चातुरी ग्वालिनि हँसि-हँसि बदन दुरावहिं ।

बालगोपाल-केलि-कल-कीरति तुलसीदास मुनि गावहिं ॥५॥

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Last Updated : December 15, 2007

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