मनोहरताको मानो ऐन ।
स्यामल गौर किसोर पथिक दोउ सुमुखि ! निरखि भरि नैन ॥
बीच बधू बिधु-बदनि बिराजत उपमा कहुँ कोऊ है न ।
मानहुँ रति ऋतुनाथ सहित मुनि बेष बनाए है मैन ॥
किधौं सिंगार-सुखमा सुप्रेम मिलि चले जग-जित-बित लैन ।
अद्भुत त्रयी किधौं पठई है बिधि मग-लोगन्हि सुख दैन ॥
सुनि सुचि सरल सनेह सुहावने ग्राम-बधुन्हके बैन ।
तुलसी प्रभु तरुतर बिलँबे किए प्रेम कनौडे कै न ?
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