मीराबाई भजन - भाग ३

मीराबाई कृष्ण भक्तीमे लीन होनेवाली भारतकी प्रमुख कवयित्री हैं।

Mirabai was a female Hindu poetess whose compositions are popular throughout India.


५१.

मोहन आवनकी साई किजोरे । आवनकी मन भावनकी ॥ कोई० ॥ध्रु०॥

आप न आवे पतिया न भेजे | ए बात ललचावनकी ॥को० ॥१॥

बिन दरशन व्याकुल भई सजनी । जैशी बिजलीयां श्रावनकी ॥ को० ॥२॥

क्या करूं शक्ति जाऊं मोरी सजनी । पांख होवे तो उडजावनकी ॥ को० ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर | इच्छा लगी हरी बतलावनकी ॥ को० ॥४॥

५२.

मत डारो पिचकारी । मैं सगरी भिजगई सारी ॥ध्रु०॥

जीन डारे सो सनमुख रहायो । नहीं तो मैं देउंगी गारी ॥ मत० ॥१॥

भर पिचकरी मेरे मुखपर डारी । भीजगई तन सारी ॥ मत० ॥२॥

लाल गुलाल उडावन लागे । मैं तो मनमें बिचारी ॥ मत० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारी ॥ मत० ॥४॥

५३.

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको ॥ध्रु०॥

ब्रिंदाबनमें तुलसीको वडलो जाको पानचरीको ॥ रा० ॥१॥

ब्रिंदावनमें धेनु बहोत है भोजन दूध दहींको ॥ रा० ॥२॥

ब्रिंदावनमें रास रची है दरशन कृष्णजीको ॥ रा० ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर हरिबिना सब रंग फिको ॥ रा० ॥४॥

५४.

मेरी लाज तुम रख भैया । नंदजीके कुंवर कनैया ॥ध्रु०॥

बेस प्यारे काली नागनाथी । फेणपर नृत्य करैया ॥ मे० ॥१॥

जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । मुखपर मुरली बजैया ॥ मे० ॥२॥

मोर मुगुट पीतांबर शोभे । कान कुंडल झलकैया ॥ मे० ॥३॥

ब्रिंदावनके कुंज गलिनमें नाचत है दो भैया ॥ मे० ॥४॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल लपटैया ॥ ने० ॥५॥

५५.

मन मोहन दिलका प्यारा ॥ध्रु०॥

माता जसोदा पालना हलावे । हातमें लेकर दोरा ॥१॥

कबसे अंगनमों खडी है राधा । देखे किसनका चेहरा ॥२॥

मोर मुगुट पीतांबर शोभे । गळा मोतनका गजरा ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल बलहारी ॥४॥

५६.

काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी ॥१॥

जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी ॥२॥

आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी ॥३॥

मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी ॥४॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी ॥५॥

५७.

भीजो मोरी नवरंग चुनरी । काना लागो तैरे नाव ॥ध्रु०॥

गोरस लेकर चली मधुरा । शिरपर घडा झोले खाव ॥१॥

त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो । छिनभर मुरली बजावे ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल चित लागो तोरे पाव ॥३॥

५८.

सुमन आयो बदरा । श्यामबिना सुमन आयो बदरा ॥ध्रु०॥

सोबत सपनमों देखत शामकू । भरायो नयन निकल गयो कचरा ॥१॥

मथुरा नगरकी चतुरा मालन । शामकू हार हमकू गजरा ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । समय गयो पिछे मीट गया झगरा ॥३॥

५९.

मैया मोकू खिजावत बलजोर । मैया मोकु खिजावत ॥ध्रु०॥

जशोदा माता मील ली जाबे । लायो जमुनाको तीर ॥१॥

जशोदाही गोरी नंदही गोरा । तुम क्यौं भयो शाम सरीर ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । नयनमों बरखत नीर ॥३॥

६०.

फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया सुनोरे । सखी मेरो मन हरलीनो ॥१॥

गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी । ज्याय बजी वो तो मथुरा नगरीया ॥२॥

तूं तो बेटो नंद बाबाको । मैं बृषभानकी पुरानी गुजरियां ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हरिके चरनकी मैं तो बलैया ॥४॥

६१.

डर गयोरी मन मोहनपास । डर गयोरी मन मोहनपास ॥१॥

बीरहा दुबारा मैं तो बन बन दौरी । प्राण त्यजुगी करवत लेवगी काशी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हरिचरणकी दासी ॥३॥

६२.

फूल मंगाऊं हार बनाऊ । मालीन बनकर जाऊं ॥१॥

कै गुन ले समजाऊं । राजधन कै गुन ले समाजाऊं ॥२॥

गला सैली हात सुमरनी । जपत जपत घर जाऊं ॥३॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । बैठत हरिगुन गाऊं ॥४॥

६३.

जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी । घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी ॥ध्रु०॥

ऐसी रीत तुज कौन सिकावे । किलन करत बलजोरी ॥१॥

सास हठेली नंद चुगेली । दीर देवत मुजे गारी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल चितहारी ॥३॥

६४.

शाम बतावरे मुरलीवाला ॥ध्रु०॥

मोर मुगुट पीताबंर शोभे । भाल तिलक गले मोहनमाला ॥१॥

एक बन धुंडे सब बन धुंडे । काहां न पायो नंदलाला ॥२॥

जोगन होऊंगी बैरागन होऊंगी । गले बीच वाऊंगी मृगछाला ॥३॥

मीराके प्रभु गिरिधर नागर । माग लीयो प्रीयां प्रेमको माला ॥४॥

६५.

आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई ।

मातापिता भाईबंद सात नही कोई ।

मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई ॥ध्रु०॥

साधु संग बैठे लोक लाज खोई । अब तो बात फैल गई ।

जानत है सब कोई ॥१॥

आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई । अब तो मै फल भई ।

आमरूत फल भई ॥२॥

शंख चक्र गदा पद्म गला । बैजयंती माल सोई ।

मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई ॥३॥

६६.

मन माने जब तार प्रभुजी ॥ध्रु०॥

नदिया गहेरी नाव पुराणी । कैशी उतरु पार ॥१॥

पोथी पुरान सब कुच देखे । अंत न लागे पार ॥२॥

मीर कहे प्रभु गिरिधर नागर । नाम निरंतर सार ॥३॥

६७.

जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया । बीच खडा तोरो लाल कन्हैया ॥ध्रु०॥

ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा । कैशी जाऊं मोरे सैंया ॥१॥

हातमों मोरे चूडा भरा है । कंगण लेहेरा देत मोरे सैया ॥२॥

दधी मेरा खाया मटकी फोरी । अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया ॥३॥

शिरपर घडा घडेपर झारी । पतली कमर लचकया सैया ॥४॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया ॥५॥

६८.

नामोकी बलहारी गजगणिका तारी ॥ध्रु०॥

गणिका तारी अजामेळ उद्धरी । तारी गौतमकी नारी ॥१॥

झुटे बेर भिल्लणीके खावे । कुबजा नार उद्धारी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥

६९.

जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी ॥ध्रु०॥

न जानु हार गवो न जानु पार गवो । न जानुं जमुनामें डुब गवोरी ॥१॥

ईत गोकुल उत मथुरानगरी । बीच जमुनामो बही गवोरी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल चित्त हार गवोरी ॥३॥

७०.

लक्ष्मण धीरे चलो मैं हारी ॥ध्रु०॥

रामलक्ष्मण दोनों भीतर । बीचमें सीता प्यारी ॥१॥

चलत चलत मोहे छाली पड गये । तुम जीते मैं हारी ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥

७१.

प्रभु तुम कैसे दीनदयाळ ॥ध्रु०॥

मथुरा नगरीमों राज करत है बैठे । नंदके लाल ॥१॥

भक्तनके दुःख जानत नहीं । खेले गोपी गवाल ॥२॥

मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । भक्तनके प्रतिपाल ॥३॥

७२.

मोहन डार दीनो गले फांसी ॥ध्रु०॥

ऐसा जो होता मेरे नयनमें । करवत ले जाऊं कासी ॥१॥

आंबाके बनमें कोयल बोले बचन उदासी ॥२॥

मीरा दासी प्रभु छबी नीरखत । तूं मेरा ठाकोर मैं हूं तोरी दासी ॥३॥

७३.

कुंजबनमों गोपाल राधे ॥ध्रु०॥

मोर मुकुट पीतांबर शोभे । नीरखत शाम तमाल ॥१॥

ग्वालबाल रुचित चारु मंडला । वाजत बनसी रसाळ ॥२॥

मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनपर मन चिरकाल ॥३॥

७४.

ज्या संग मेरा न्याहा लगाया । वाकू मैं धुंडने जाऊंगी ॥ध्रु०॥

जोगन होके बनबन धुंडु । आंग बभूत रमायोरे ॥१॥

गोकुल धुंडु मथुरा धुंडु । धुंडु फीरूं कुंज गलीयारे ॥२॥

मीरा दासी शरण जो आई । शाम मीले ताहां जाऊंरे ॥३॥

७५.

शाम बन्सीवाला कन्हैया । मैं ना बोलूं तुजसेरे ॥ध्रु०॥

घर मेरा दूर घगरी मोरी भारी । पतली कमर लचकायरे ॥१॥

सास नंनदके लाजसे मरत हूं । हमसे करत बलजोरी ॥२॥

मीरा तुमसो बिगरी । चरणकमलकी उपासीरे ॥३॥

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Last Updated : December 23, 2007

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