२६.
देखोरे देखो जसवदा मैय्या तेरा लालना । तेरा लालना मैय्यां झुले पालना ॥ध्रु०॥
बाहार देखे तो बारारे बरसकु । भितर देखे मैय्यां झुले पालना ॥१॥
जमुना जल राधा भरनेकू निकली । परकर जोबन मैय्यां तेरा लालना ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिका भजन नीत करना ॥ मैय्यां० ॥३॥
२७.
जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां । वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां ॥ध्रु०॥
बैल लावे भीतर बांधे । छोर देवता सब गैय्यां ॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते बालक आन जगावे । ऐसा धीट कनैय्यां ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरि लागुं तोरे पैय्यां ॥ जसवदा० ॥३॥
२८.
कालोकी रेन बिहारी । महाराज कोण बिलमायो ॥ध्रु०॥
काल गया ज्यां जाहो बिहारी । अही तोही कौन बुलायो ॥१॥
कोनकी दासी काजल सार्यो । कोन तने रंग रमायो ॥२॥
कंसकी दासी काजल सार्यो । उन मोहि रंग रमायो ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । कपटी कपट चलायो ॥४॥
२९.
सखी मेरा कानुंडो कलिजेकी कोर है ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडलकी झकझोल ॥स० १॥
सासु बुरी मेरी नणंद हटेली । छोटो देवर चोर ॥स० २॥
ब्रिंदावनकी कुंजगलिनमें । नाचत नंद किशोर ॥स० ३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर । नागर चरणकमल चितचोर ॥स० ४॥
३०.
सांवरो रंग मिनोरे । सांवरो रंग मिनोरे ॥ध्रु०॥
चांदनीमें उभा बिहारी महाराज ॥१॥
काथो चुनो लविंग सोपारी । पानपें कछु दिनों ॥सां० २॥
हमारो सुख अति दुःख लागे । कुबजाकूं सुख कीनो ॥सां० ३॥
मेरे अंगन रुख कदमको । त्यांतल उभो अति चिनो ॥सां० ४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । नैननमें कछु लीनो ॥सां० ५॥
३१.
जल भरन कैशी जाऊंरे । जशोदा जल भरन ॥ध्रु०॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं ॥ज० १॥
आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना । बिचमें सरस्वतीमें नहावूं ॥ज० २॥
ब्रिंदावनमें रास रच्चा है । नृत्य करत मन भावूं ॥ज० ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हेते हरिगुण गाऊं ॥ज० ४॥
३२.
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी । कांकरी कांकरी कांकरीरे ॥ध्रु०॥
गायो भेसो तेरे अवि होई है । आगे रही घर बाकरीरे ॥ कानो ॥१॥
पाट पितांबर काना अबही पेहरत है । आगे न रही कारी घाबरीरे ॥ का० ॥२॥
मेडी मेहेलात तेरे अबी होई है । आगे न रही वर छापरीरे ॥ का० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । शरणे राखो तो करूं चाकरीरे ॥ कान० ॥४॥
३३.
ज्यानो मैं राजको बेहेवार उधवजी । मैं जान्योही राजको बेहेवार ।
आंब काटावो लिंब लागावो । बाबलकी करो बाड ॥जा०॥१॥
चोर बसावो सावकार दंडावो । नीती धरमरस बार ॥ जा० ॥२॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो । कुबजाके किरतार ॥ जा० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । अद्वंद दरबार ॥ जा० ॥४॥
३४.
मेरे तो आज साचे राखे हरी साचे । सुदामा अति सुख पायो दरिद्र दूर करी ॥ मे०॥१॥
साचे लोधि कहे हरी हाथ बंधाये । मारखाधी ते खरी ॥ मे० ॥२॥
साच बिना प्रभु स्वप्नामें न आवे । मरो तप तपस्या करी ॥ मे० ॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । बल जाऊं गडी गडीरे ॥ मे० ॥४॥
३५.
कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे ॥ध्रु०॥
छोड कनैया ओढणी हमारी । माट महिकी काना मेरी फुटे ॥ को० ॥१॥
छोड कनैया मैयां हमारी । लड मानूकी काना मेरी तूटे ॥ को० ॥२॥
छोडदे कनैया चीर हमारो । कोर जरीकी काना मेरी छुटे ॥ को० ॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । लागी लगन काना मेरी नव छूटे ॥ को० ॥४॥
३६.
कायकूं देह धरी भजन बिन कोयकु देह गर्भवासकी त्रास देखाई धरी वाकी पीठ बुरी ॥ भ० ॥१॥
कोल बचन करी बाहेर आयो अब तूम भुल परि ॥ भ० ॥२॥
नोबत नगारा बाजे । बघत बघाई कुंटूंब सब देख ठरी ॥ भ० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जननी भार मरी ॥ भ० ॥४॥
३७.
रटतां क्यौं नहीं रे हरिनाम । तेरे कोडी लगे नही दाम ॥
नरदेहीं स्मरणकूं दिनी । बिन सुमरे वे काम ॥१॥
बालपणें हंस खेल गुमायो । तरुण भये बस काम ॥२॥
पाव दिया तोये तिरथ करने । हाथ दिया कर दान ॥३॥
नैन दिया तोये दरशन करने । श्रवन दिया सुन ज्ञान ॥४॥
दांत दिया तेरे मुखकी शोभा । जीभ दिई भज राम ॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । है जीवनको काम ॥६॥
३८.
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे ॥ध्रु०॥
कारेको विश्वास न कीजे अतिसे भूल परे ॥१॥
काली जात कुजात कहीजे । ताके संग उजरे ॥२॥
श्याम रूप कियो भ्रमरो । फुलकी बास भरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । कारे संग बगरे ॥४॥
३९.
माई तेरी काना कोन गुनकारो । जबही देखूं तबही द्वारहि ठारो ॥ध्रु०॥
गोरी बावो नंद गोरी जशू मैया । गोरो बलिभद्र बंधु तिहारे ॥ मा० ॥१॥
कारो करो मतकर ग्वालनी । ये कारो सब ब्रजको उज्जारो ॥ मा० ॥२॥
जमुनाके नीरे तीरे धेनु चराबे । मधुरी बन्सी बजावत वारो ॥ मा० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल मोहि लागत प्यारो ॥ मा० ॥४॥
४०.
आज मेरेओ भाग जागो साधु आये पावना ॥ध्रु०॥
अंग अंग फूल गये तनकी तपत गये ।
सद्गुरु लागे रामा शब्द सोहामणा ॥ आ० ॥१॥
नित्य प्रत्यय नेणा निरखु आज अति मनमें हरखू ।
बाजत है ताल मृदंग मधुरसे गावणा ॥ आ० ॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे छबी देखी मन मोहे ।
मीराबाई हरख निरख आनंद बधामणा ॥ आ० ॥३॥
४१.
जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू । तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू ॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया । तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया ॥ जो० ॥१॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा । तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा ॥ जो० ॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा । तुम भये सोना हम भये स्वागा ॥ जो० ॥३॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रजके बाशी । तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी ॥ जो० ॥४॥
४२.
मन अटकी मेरे दिल अटकी । हो मुगुटकी लटक मन अटकी ॥ध्रु०॥
माथे मुकुट कोर चंदनकी । शोभा है पीरे पटकी ॥ मन० ॥१॥
शंख चक्र गदा पद्म बिराजे । गुंजमाल मेरे है अटकी ॥ मन० ॥२॥
अंतर ध्यान भये गोपीयनमें । सुध न रही जमूना तटकी ॥ मन० ॥३॥
पात पात ब्रिंदाबन धुंडे । कुंज कुंज राधे भटकी ॥ मन० ॥४॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । सुरत रही बनशी बटकी ॥ मन० ॥५॥
फुलनके जामा कदमकी छैया । गोपीयनकी मटुकी पटकी ॥ मन० ॥६॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जानत हो सबके घटकी ॥ मन अटकी० ॥७॥
४३.
भोलानाथ दिंगबर ये दुःख मेरा हरोरे ॥ध्रु०॥
शीतल चंदन बेल पतरवा मस्तक गंगा धरीरे ॥१॥
अर्धांगी गौरी पुत्र गजानन चंद्रकी रेख धरीरे ॥२॥
शिव शंकरके तीन नेत्र है अद्भूत रूप धरोरे ॥३॥
आसन मार सिंहासन बैठे शांत समाधी धरोरे ॥४॥
मीरा कहे प्रभुका जस गांवत शिवजीके पैयां परोरे ॥५॥
४४.
चालो मान गंगा जमुना तीर गंगा जमुना तीर ॥ध्रु०॥
गंगा जमुना निरमल पानी शीतल होत सरीस ॥१॥
बन्सी बजावत गावत काना संग लीये बलवीर ॥२॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडल झलकत हीर ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल शीर ॥४॥
४५.
नाथ तुम जानतहो सब घटकी । मीरा भक्ति करे प्रगटकी ॥ध्रु०॥
ध्यान धरी प्रभु मीरा संभारे पूजा करे अट पटकी ।
शालिग्रामकूं चंदन चढत है भाल तिलक बिच बिंदकी ॥१॥
राम मंदिरमें मीराबाई नाचे ताल बजावे चपटी ।
पाऊमें नेपुर रुमझुम बाजे । लाज संभार गुंगटकी ॥२॥
झेर कटोरा राणाजिये भेज्या संत संगत मीरा अटकी ।
ले चरणामृत मिराये पिधुं होगइ अमृत बटकी ॥३॥
सुरत डोरीपर मीरा नाचे शिरपें घडा उपर मटकी ।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर सुरति लगी जै श्रीनटकी ॥४॥
४६.
राम रतन धन पायो मैया मैं तो राम ॥ध्रु०॥
संत संगत सद्गुरु प्रतापसे भाग बडो बनी आयो ।
खरच न खुटे न वांकूं चोर न लुटे दीन दीन होत सवायो ॥ मैं ० ॥१॥
नीर न डुबे वांकूं अग्नि न जाले धरणी धरयो न समायो ॥ मैं ० ॥२॥
नामको नाव भजनकी बतियां भवसागरसे तार्यो ॥ मैं ० ॥३॥
मीराबाई प्रभु गिरिधर शरने । चरनकमल चित्त लायो ॥ मैं ० ॥४॥
४७.
हरिनाम बिना नर ऐसा है । दीपकबीन मंदिर जैसा है ॥ध्रु०॥
जैसे बिना पुरुखकी नारी है । जैसे पुत्रबिना मातारी है ।
जलबिन सरोबर जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है । जैसे बिना लौकनी रसोई है ।
घरधनी बिन घर जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है । जैसा सुम संचरी नाया है ।
गिनका घर पूतेर जैसा है । हरिनम बिना नर ऐसा है ॥३॥
मीराबाई कहे हरिसे मिलना । जहां जन्ममरणकी नही कलना ।
बिन गुरुका चेला जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥४॥
४८.
क्या करूं मैं बनमें गई घर होती । तो शामकू मनाई लेती ॥ध्रु०॥
गोरी गोरी बईया हरी हरी चुडियां । झाला देके बुलालेती ॥१॥
अपने शाम संग चौपट रमती । पासा डालके जीता लेती ॥२॥
बडी बडी अखिया झीणा झीणा सुरमा । जोतसे जोत मिला लेती ॥३॥
मीराबाई कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल लपटा लेती ॥४॥
४९.
अब तो रामनाम दुसरा न कोई ॥ध्रु०॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई । साधु संग बेठ बेठ लोकलाज खोई ॥१॥
संत देखी दौडे आई जगत देखी रोई । प्रेमका आसु डाल डाल अमर वेल बोई ॥२॥
मारगमें दोई तारण मीले संतराम दोई । संत हमारे शिश उपर राम हृदय होई ॥३॥
अंतमसे तंता काढयो पिछे रही सोई । राणे मै लिया विषका प्याला पिईने मगन होई ॥४॥
अब तो बात फेल गई जाने सब कोई । दासी मीरा बाई गिरिधर नागर होनारी सो होई ॥५॥
५०.
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी ॥ध्रु०॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी ॥ हाथ० ॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी ॥ हाथ० ॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी ॥ हाथ० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी ॥ हाथ० ॥४॥