सहजोबाईजी - कर्म और कर्मफल

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


कर्म और कर्मफल
पसु पंछी नर सुर असुर, जलचर कीट पतंग ।
सबही उतपति कर्म की, सहजो नाना अंग ॥
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चौरासी का भँवर
इक इक बार सबै तुम भये । कहिये कहा बहुत दुख सहे ॥
दुख खे खे करि यह तन पायौ । सहजो हरि गुरु बिना गँवायौ ॥
चरनदास गुरु पूरे पाये। चौरासी जम दंड छुटाये ॥
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जहाँ आसा तहाँ वासा
सहजो रहै मन बासना, तैसी पावै ठौर ।
जहाँ आस तहँ बास है, निस्चै करी कड़ोर ॥
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देह छूटै मन में रहै, सहजो जैसी आस ।
देह जन्म जैसो मिलें, जैसे ही घर बास ॥
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जा की आस रहै मन्दिर में । होकर घूँस बसै सो घर में ।
रहै बासना द्रब्य मँझारा । जन्मै नाग होय पुनि कारा ॥
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जा की रहै पुत्र में आसा । सूवर जन्म नीच घर बासा ॥
जा का मन रहै राज दुवारे । हस्ती हो सिर मेलै छारे ॥
रहै बासना नीर पियासी । मीन देह धरि जल की बासी ॥
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रहै बासना बाहन संगा । होय जन्म ले बाहन अंगा ॥
जहाँ बासना जित ही जाई । यह मत बेद पुरानन गाई ॥
चरनदास गुरु मोहिं बताई । तजो बासना सहजोबाई ॥
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साध संग की बासना, जेहि घट पूरी सोय ।
मनुष जन्म सतसंग मिलै, भक्ति परापत होय ॥
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सहजो हरि के नाम की, रहै बासना बीर ।
चौरासी संकट कटै, जम की छूटै पीर ॥
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सहजो लोक प्रलोक की, नहीं बासना ताहि ।
सो वह ब्रह्म सरूप है, सागर लहर समाय ॥
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जा की गुरु में बासना, सो पावै भगवान ।
सहजो चौथे पद बसै, गावत बेद पुरान ॥
परमेसुर की बासना, अन्त समय मन माहिं ।
तन छूटे हरि कूँ मिलै, उपजै बिनसै नाहिं ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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