यह अवसर दुर्लभ मिलै, अचरज मनुषा देह ।
लाभ यही सहजो कहै, हरि सुमिरन करि लेह ॥
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चौरासी जोनी भुगत, पायौ मनुष सरीर ।
सहजो चूके भक्ति बिनु, फिर चौरासी पीर ॥
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चौरासी भुगती घनी बहुत सही जम मार ।
भरम फिरे तिहुँ लोक में तहू न मानी हार ॥
तहू न मानी हार मुक्ति की चाह न कीन्ही ।
हीरा देही पाय मोल माटी के दीन्ही ॥
मूरख नर समझै नहीं समझाया बहु बार ।
चरनदास कहैं सहजिया सुमिरै ना करतार ॥
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इन्दर की पदवी मिलै, और ब्रह्म की आव ।
आगे तौ भी मरन है, सहजो सकल बहाव ॥
राम नाम ले सहजिया, दीजै सर्ब अकोर ।
तीन लोक के राज लों, अन्त जाहुगे छोर ॥
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सहजो जा घट नाम है, सो घट मंगल रूप ।
राम बिना धिर्कार है, सुन्दर धनवंत भूप ॥
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पानी का सा बुलबुला यह तन ऐसा होय ।
पीव मिलन की ठानिये रहिये ना पड़ि सोय ॥
रहिये ना पड़ि सोय बहुर नहिं मनुखा देही ।
आपन ही कूँ खोज मिलै जब राम सनेही ॥
हरि कूँ भूले जो फिरैंरै सहजो जीवन छार ।
सुखिया जब ही होयगो सुमिरैगो करतार ॥
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स्वास खजानो जातु है, ता की सोधी नाहिं ।
सहजो खर्चों का रह्यो, कर हिसाब घर माहिं ॥
सहजो नौबत स्वास की, बाजत है दिन रैन ।
मूरख सोवत है महा, चेतन कूँ नहिं चैन ।
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स्वासा दीपक के बुझे, होत अँधेरी देह ।
सहजो सूनी प्रान बिनु, जब कैसो हरि नेह ॥
सहजो फिर पछितायगी, स्वास निकसि जब जाय ।
जब लग रहै सरीर में, राम सुमिर गुन गाय ॥
बहुत गई थोड़ी रही, यह भी रहसी नाहिं ।
जन्म जाय हरि भक्ति बिनु, सहजो झुर मन माहिं ॥
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उपजि उपजि फिर फिर मरौ, जम दे दारुन दुक्ख ।
लाज नहीं सहजो कहै, धिर्ग तुम्हारो मुक्ख ॥
जन्म चलो ही जातु है, ये दिन आछे जाहिं ।
जीवत जागह ना करी, बैठोगे केहि ठाहिं ॥
कर्मन के प्रेरे फिरौ, जन्म जन्म दुख होय ।
मुक्ति बिचारो सहजिया, आवागवन जु खोय ॥
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जग हाकियों में कहा क्कियौ तुम आय ।
स्वान की ज्यों पेर भरि कै, सोवौ जन्म गँवाय ॥
पहर पिछले नाहिं जेरगो, कियो ना सुभ कर्म ।
आन मारग जाय लागो, लियो ना गुरु धर्म ॥
जप न कीयो तप न साधो दियो ना तैं दान ।
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बहुत उरझो मोह मद में, आयु काया मान ॥
देह घर है मौत का रे, आन काढ़े तोहि ।
एक छिन नहिं रहन पावै, जब कैसे कुछ होय ॥
रहन रैन दिन आराम ना, काटै जो तेरी आव ।
चरनदास कहें सुन सहजिया, अब करौ भजन उपाव ॥
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जन्म मरन बंधन कटै, टूटै जम की फाँस ।
राम नाम ले सहजिया, होय नहीं जग हाँस ॥
चौरासी के दुख छुटै, छप्पन नर्क तिरास ।
राम नाम ले सहजिया, जम पुर मिलै न बास ॥