विशिष्ट पूजा महत्व

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


( किसी भी यज्ञादि महोत्सवों, पूजा-अनुष्ठानों अथवा नवरात्रपूजन, शिवरात्रिमें शिव-पूजन, पार्थिव-पूजन, रुद्राभिषेक, सत्यनारायणपूजन, दीपावली-पूजन आदि कर्मोमें प्रारम्भमें स्वस्तिवाचन, पुण्याहवाचन, गणेश-कलश-नवग्रह तथा रक्षा-विधान आदि कर्म सम्पन्न किये जाते हैं, इसके अनन्तर प्रधान-पूजा की जाती है । अत: यहाँ भी वह पूजा-विधान दिया गया है । नान्दीमुख श्राद्ध तथा विशेष अनुष्ठानोंके प्रधान देवताका पूजन-विधान यहाँ नहीं दिया गया है, अन्य पद्धतियोंको देखकर करना चाहिये । )
देवपूजनमें वेद-मन्त्र, फिर आगम-मन्त्र और बादमें नाम-मन्त्रका उच्चारण किया जाता है । यहाँ इसी क्रमका आधार लिया गया है । जिन्हें वेद-मन्त्र न आता हो, उन्हें आगम-मन्त्रोंका प्रयोग करना चाहिये और जो इनका भी शुद्ध उच्चारण न कर सकें, उनको नाम-मन्त्रोंसे पूजन करना चाहिये ।
पूजासे पहले पात्रोंको क्रमसे यथास्थान रखकर पूर्व दिशाकी और मुख करके आसनपर बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये -
ॐ केशवाय नम: । ॐ नारायणाय नम: । ॐ माधवाय नम: ।
आचमनके पचात्‍ दाहिने हाथके अँगूठेके मूलभागसे ‘ॐ हृषीकेशाय नम: ॐ गोविन्दाय नम:’ कहकर ओठोंको पोंछकर हाथ धो लेना चाहिये । तत्पश्चात्‍ निम्नलिखित मन्त्रसे पवित्री धारण करे -
‘पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम्‍ ।’
पवित्री धारण करनेके पश्चात्‍ प्राणायाम करे । इसके बाद बायें हाथमें जल लेकर दाहिने हाथसे अपने ऊपर और पूजा सामग्रीपर छिडकना चाहिये-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत्‍ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ॥
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु ।
तदनन्तर पात्रमें अष्टदल-कमल बनाकर यदि गणेश-अम्बिकाकी मूर्ति न हो तो सुपारीमें मौली लपेटकर अक्षतपर स्थापित कर देनेके बाद हाथमें अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन पढना चाहिये ।

N/A

References : N/A
Last Updated : December 02, 2018

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP