हिंदुस्थानीं पदें - पदे २६ ते ३०
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
पद २६
चलो उसी घर ज्यावे साधू चलो उसी घर जावे जी ।
एकवार जिस ठौर गये पर फेर पलट नहि आवेजी ॥धृ॥
शुकसनकादिक जिसी धामके हुवे है रहिवासी जी ।
बडे बडे कल्पांत गये तो बने रहे अविनाशी जी ॥१॥
ग्यान आगनसे तिन देहेकी जलादेव आगपेटी जी ।
गुरु जुगतकी काठी लेकर चढो गगनपर येटी जी ॥२॥
अलख भुवनके भीतर साधू तुमहम नहि कछु दूजे जी ।
उसई तखतसे देखे खलकत ब्रह्मरूप सब सूझेजी ॥३॥
जाना आना हुवे खिसाना सबही ठौर निरंजन जी ।
देवभगत सब आप बने अपअपना करते पूजन जी ॥४॥
पद २७
वोहि गुरूका चेला जिसने पिया ब्रह्मरसप्यालाजी ।
जहां देखे तहां आपबिना नहि दिनरयन उजियाला जी ॥धृ॥
तंत किया बिच मनका तोता निर्गुन बात पढायाजी ॥
निराधार चिद्गगगनबीचमो परबिन खूप उडायाजी ।
गुरु जुगतका तसमा बांधे ग्यानलंगोटा कसकरजी ।
अहंकारका सेर मारक आलख बनाया बसकरजी ॥२॥
निजध्यासका कपडा छानकर पीवे चिन्मय भंग जी ।
सहजसमाधीं अमल चढाकर सदारहे खुषरंजी ॥३॥
भेदभावकू कधु नहि ज्याने दूजे कू नहि माने जी ।
फकत अकेला साच निरंजन आप आपकू चीने जी ॥४॥
पद २८
सुनबे अहेमक नर बात हमारी । कर हरसे यारी ॥धृ॥
पगडी सिरपर क्कैते डिरखता । नखरा बतलाना ।
मुछ्या उलटाकर बल क्कै देता । आखी मिचकाता ॥१॥
झुटिदो दिनकी जानि दिवाणी । उतरेगा पाणी ।
अखेर होवेगी फाना फानी सबकुच धुलधानी ॥२॥
जमके आवेंगे दूत झडाझड । मारेंगे छेकड ।
महि मिलजावे सबकुच अक्कड । होवेगा खुक्कड ॥३॥
छोडो खटला सबघर दौलतका । हो हारपग सतका ।
कहेता निरंजन तेरे हितका । डर नहि जमदुतका ॥४॥
पद २९
साईजी धन्य हमारो भाग ॥धृ॥
इस नयनोसे देखे गुरुजी आज तुह्मारे पाग ॥१॥
जनम जनमका पातक खोया लागी ग्यानकी आग ॥२॥
जनम मरणका फेरा चुकाया नहि अबजमका लाग ॥३॥
निरंजन पद पायो अक्षई जहा नहि मनका भाग ॥४॥
पद ३०
ऐसा नहि करना बे नहि करना फेरफेरकर मरना ॥धृ॥
हाथी घोडा किडिया होना भैसा कुत्ता चिडिया ॥१॥
ह्या दोदिन व्हां दोदिन लिय्या भवचक्कर तै हारबिन ॥२॥
अच्छी नरदेह पाई जलदी करले अब भरपाई ॥३॥
रघुवरपद लपटाना बच्चा साच निरंजन होना ॥४॥
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Last Updated : November 25, 2016
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