हिंदुस्थानीं पदें - पदे १६ ते २०

वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्‍चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.


पद १६
सद्गुरु साई हमारा । बे भवजलपार उपरा बे ॥धृ॥
दिलदरयाका गहेरा पाणी संघय घोर अंधारा ।
आशा कल्पना लाट उछाटे विकल्प छूटा वारा ॥१॥
नि:सिम भगतका जहाज बनाया आतमग्यान फरारा ।
कडकडाट बैराग्य खेचकर उन्मन गोशा सारा ॥२॥
शांतिक्षमाकी तोफ नमाकर षडमच्छीकूं मारा ।
नीरंजन रघुनाथ सद्गुरु अवघट घाट उतारा ॥३॥

पद १७
रतनाकर सागर म्याने प्रभुराज बिराजत है ॥धृ॥
गहेरा जल भरपुर दरयाव । आथाफ नहि लगता हे याव ।
तामे धरति किया जमाव । कुंदरत आज बहारीकी माव । नहि कोई जाने ॥१॥
मथुरा बिंद्राबनके बासी । श्रीगोपाललाल अविनाशी ।
जिनकी रमा बनी है दासी । सो भये द्वाराबतकेबासी । बने रहे राज ॥२॥
टिकंलाल बडे है माई । जिनकी नागर मुसल लढाई ।
क्या कहु उसकी खूब बढाई । क्या कहु उसकी खूब बढाई ।
रजनीचरकीं धूल उडाई । सब कोई जाने ॥३॥
सबमे बडि राणि है रुक्मन । ज्याकर तप कीया दिंडुरबन ।
हारजी देख फीरत है बनबन । मुरलि बजावत है सन्सन्सन् । पंढरपुर दर्म्याने ॥४॥
जांबूवंती और भामाजी । जिनकी बिकट बडी है मर्जी ।
नारद आपमतलबा गर्जी । उनकू दान कियाथा हारजी । छोडा देकर नाने ॥५॥
सबमे राधा है हुसियार । जिनपर माधोजीका प्यार । भरि है दौलत अपरंपार ।
तमाम कुलसारा यखत्यार । सब कोई माने ॥६॥
देवकी पुरुषोत्तम गोपाल । बसुदेव फेरत है माल । त्रीविक्रम गोवर्धनलाल ।
उठाया पर्बतकू बहुसाल । गोकुल रखने ॥७॥
सबके बिज खडे महाराज । कांचन मोचनका है साज कानन कुंडल मुकुट विराज ।
पीतांबरधर प्रभु सिरताज । पैटे उचटी काने ॥८॥
चौभुजरुप खुबहै मुलाम । साधू संतनके निजधाम । छोडा है घरका सब काम ।
बना है नीरंजन गूलाम । चरणरज धोने ॥९॥

पद १८
जोग नहि आसाना बे । तनपर उदार होना बे ॥धृ॥
नागेंदरके सिरका मनका ज्याकर उठाय लेना ।
हात लगातो बेहतर नहितो आपना जिवडा खोना ॥१॥
सोता है पंचानन उसकूं पुकारकर हटकाना ।
फटका देकर नही मरातो आपना जीसे जाना ॥२॥
परचीत नही है उसने लोहोके चने चबाकर खाना ।
उसके भीतर चैन पडीतो जोग कमाने आना ॥३॥
नीरंजन रघुनाथ हुकुमसे छाडी तनकी माया ।
मर्दा मर्दी कलजुगम्याने पूरा जोग कमाया ॥४॥

पद १९
सद्गुरु दैवत साचा भाई । ओहि बराबर और न कोई ॥धृ॥
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तीन्हो । सद्गुरुके सर काई न किन्हो ॥१॥
तेहतिस कोटी सुरेश्वर सारे । गुरुसमता नहि पावत बारे ॥२॥
गुरूने मोहे निरंजन कीया । सब दैवतका देव बनाया ॥३॥

पद २०
जोगी जोग कमायाबे । उमरकू नाहाकर खोया बे ॥धृ॥
सिरपर लंबी जटा बढाई । तनकू खाक लगाया ।
गाम छोड पाहाडमे पैठा । छोड देई सब माया ॥१॥
धूपकाल देह अगन तपाकर बरस काल सिर लीया ।
थंडकाल पाणीमो सोकर सुका पत्ता खाया ॥२॥
एकपाव वर बैठक साधी रातदीन नहि सोया ।
मौन पकड इंद्रियकू मारा ऊपर हात सुकाया ॥३॥
आपने आप पछानत नहि तो सब कुछ है पस्ताया ।
निरंजन रघुनाथ गुरुका साच वचन नहि पाया ॥४॥

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Last Updated : November 25, 2016

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