हिंदुस्थानीं पदें - पदे २१ ते २५
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
पद २१
अब कै डरना मनवा याद गुरूकी करना ॥धृ॥
सगे सैद रे सब कुय छोडे छोडे लडके बाले ।
अब दुनियासे क्कैकर कहना भाई भतीजे साले ॥१॥
धर छोडे दौलतसे बिछडे पकडा मुलुक बिराना ।
उंचे तंबू हाथी घोडे हमे काहेकू होना ॥२॥
निरंजन रघुनाथ सद्गुरु याद हमेशा करता ।
अव्वल आखर सब कुच पाया अब किसे नहि डरता ॥३॥
पद २२
सद्गुरु दाता बे । मुजकू च्याहे सो बतलाता बे ॥धृ॥
सद्गुरु मातापिता हमारा सद्गुरु सग्गा भाई ।
इस धर्तींके पडदे ऊपर और दुजा नहि कोई ॥१॥
सद्गुरु मेरा महाल मुलक है धनदौलत कुलसारा ।
सद्गुरु देता अनाज पाणी क्या कहु बारोबारा ॥२॥
सद्गुरु मेरा रामरहिम है पिर पैगंबर सारा ।
निरंजन रघुनाथ सद्गुरु भवजल पार उत्तारा ॥३॥
पद २३
महापंथ चलना जोगी महापंथ चलना ॥धृ॥
चतुर्दलशटदल दशदल गहेरा महापंथ चलना ।
अष्टदलोका उलटा मोहरा महापंथ चलना ॥
षोडदशल नीचेके बारा महापंथ चलना ।
सहस्रदल द्विदलसे न्यारा महापंथ चलना ॥१॥
अष्टकमलहै एकहि देठे महापंथ चलना ।
भातभातके छोटेमोठे महापंथ चलना ॥
रंग बिरंगी सीधे उलटाए महापंथ चलना ।
ठौर ठौरपर दैवत पैठे महापंथ चलना ॥२॥
इडापिंगला रोधन करना महापंथ चलना ।
सीधा मारग चले शिशुम्ना महापंथ चलना ॥
प्राण पलटकर उलटा लाना महापंथ चलना ।
अपान लेकर ऊपर ज्याना महापंथ चलना ॥३॥
खेचरि मुद्रा दाटा देना महापंथ चलना ।
कुंडलनीकू ऊपर लेना महापंथ चलना ॥
सत्रावीका अमृत पीना महापंथ चलना ॥
कायासे अजरामर होना महापंथ चलना ॥४॥
सोहं नादका शंख बजाना महापंथ चलना ।
दश नादोका शद्ब खनाना महापंथ चलना ॥
भातभातका होत तनाना महापंथ चलना ।
नाद सुनाकर उन्मन होना महापंथ चलना ॥५॥
श्रीरघुनाथ गुरुका दीया महापंथ चलना ।
जोग पुरा निरंजन कीया महापंथ चलना ॥
ब्रह्मरंध्र गुंफामो सोया महापंथ चलना ।
अनादिनाथका निजपद पाया महापंथ चलना ॥६॥
पद २४
लगगइरे चोर गहरी ॥धृ॥
गुरुनें मजकू मार बिठाया पाणी न मागन दीया ॥१॥
आतमग्यानकी कठर कटारी गुरुनें मेरे छातिन मारी ॥२॥
निरंजन अब नहि जीनेका मिल रह्या रुप नीराकारे ॥३॥
पद २५
गुरुकी अजब करामत बे । क्या कहूं उसकी शामत बे ॥धृ॥
आखी भीतर आखी देकर साखी नयन दिखाया ।
एक ठौरपर बैठे बैठे खलफ फिराकर लाया ॥१॥
आग बुझाकर हिर देयानें साचा कीया उजला ।
कानोभी तर आवाज देकर फेरी मनकी माला ॥२॥
जिभ्यासे नहि चाखा वो रस गुरुनें मुज पिलाया ।
जनम जनमकी आशा तृष्णा गर्दी बीच मिलाया ॥३॥
नहि देखे सो देखादेखी मानी झूटी माया ।
नीरंजन रघुनाथ मेहेरसे साची हिकमत पाया ॥४॥
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Last Updated : November 25, 2016
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