अब शुभाशुभ फल देने वाला कूर्मचक्र कहता हूँ । बुद्धिमान् पुरुष , कूर्मचक्र को जान लेने पर सारे शास्त्र का पण्डित हो जाता है । अब अभेद्य को भेदन करने वाले इस कूर्मचक्र को आदरपूर्वक सुनिए ॥७२ - ७३॥
चार पैरों वाले कूर्म के आकार का महाचक्र निर्माण करे । उसके शिरः स्थान पर १६ स्वरों को , आगे के दाहिने पैर पर क वर्ग , बायें पैर पर च वर्ग , पीछे के दाहिने पैर पर ट वर्ग तथा बायें पैर पर त वर्ग लिले । फिर उदर स्थान पर प वर्ग लिखे ॥७४ - ७५॥
हृदय स्थान पर य र स ह , पुच्छ पर शत्रुबीज तथा लिङ्ग पर क्षकार वर्ण लिखे । इस प्रकार कूर्मचक्र पर सभी वर्णों को लिख कर मन्त्रज्ञ साधक कलिदोष नाशक कूर्मचक्र पर मन्त्राक्षर से गणना करे । स्वरों पर यदि मन्त्र का आद्य अक्षर पडे तो लाभ , क वर्ग पर मन्त्राद्याक्षर पडे तो श्री और च वर्ग पर विवेक की प्राप्ति होती है ॥७६ - ७७॥
ट वर्ग पर राजपदवीं , त वर्ग पर धन की प्राप्ति , उदर पर सर्वनाश , ह्रदय पर दुःख पृष्ठ पर सब प्रकार का संतोष , पूँछ पर निश्चित मरण , लिङ्र ( दाहिने पैर ) पर वैभव तथा वामपाद पर मन्त्राद्याक्षर पड़ने से दुःख होता है ॥७८ - ७९॥
यदि दो विरुद्ध की प्राप्ति हो तो चक्र का विचार त्याग देना चाहिए , क्योंकि एक विरुद्ध से धर्म का नाश होता है । दो विरुद्ध पड़्ने से मरण निश्चित है । जहाँ देवाक्षर हो वहाँ यदि अपने नाम का अक्षर आवे ( तो ग्राह्म है ) यदि विरुद्ध हों तो त्याग कर देवे , क्योंकि वह शत्रु होता है । अतः दूसरे मन्त्र का विचार करना चाहिए ॥८० - ८१॥
हे महेश्वर ! यदि वर्णमाला पृथक् स्थान में हो , किन्तु उसमें सौख्य भाव हो तो उस सौख्य भाव का परित्याग नहीं करना चाहिए । अनेक गेहों पर विचार करने पर भी यदि दोष ही दोष आवे तो उस उत्तम मन्त्र का भी परित्याग कर देना चाहिए । हे देव ! यहाँ तक हमने दृष्टादृष्ट फल देने वाले मन्त्रों का वर्णन किया । मन्त्र माला का महेश्वर जो साधक वर्णों को स्थापित कर शुद्ध करता है ऐसा करने से यदि चक्रेन्द्र शुद्ध मिले तो वह मन्त्र सिद्धि देने वाला तथा शुभकारी होता है ॥८२ - ८४॥