यहाँ तक दूसरी परीक्षा विधि हुई । अब मन्त्र परीक्षण की तीसरी विधि कहते हैं - अब साधकों के लिए कुलाकुल का भेद कहता हूँ यतः सृष्टि पाञ्चभौतिक है , इसलिए ५० वर्ण भी वायु , अग्नि , भू , जल और आकाश रूप से पञ्चतत्त्वात्मक ही हैं । उन ५० वर्णों की संख्या इस प्रकार है - पाँच ह्स्व , पाँच दीर्घ , बिन्दु अन्त वाले दो ( अं अः ) और सन्धि से युक्त चार ( ए ऐ ओ औ ), इस प्रकार कुल १६ स्वर हैं । ककारादि ५ वर्ग में कुल २५ , य र ल व श ष स ह और क्ष - इस प्रकार कुल मिलाकर ये ५० वर्ण हैं ॥३३ - ३५॥
कुलाकुल फलविचार - साधक के नाम का आद्य अक्षर तथा मन्त्र का आद्यक्षर यदि एक ही ( भूत एवं देवता वाला ) हो तो उस मन्त्रको सकुल और हितकारी जानना चाहिए ॥३५ - ३६॥
पृथ्वी तत्त्व वाले वर्णों के जल तत्त्व वाले वर्ण मित्र हैं , अग्नि तत्त्व वाले वर्णों के वायु तत्त्वात्मक वर्ण मित्र हैं , सभी पार्थिव तत्त्व तथा जल तत्त्व वाले वर्णों के अग्नि तत्त्व वाले वर्ण शत्रु हैं तथा आकाशीय एवं जल तत्त्व वाले वर्णों के वायु तत्त्व वाले वर्ण शत्रु कहे गये हैं ॥३६ - ३७॥
पार्थिव तत्त्वों के जल . तत्त्व वाले वर्ण मित्र तथा तैजस तत्त्व वाले वर्ण शत्रु कहे गये हैं । किन्तु आकाश तत्त्व वाले वर्ण सभी तत्त्वों के मित्र होते हैं । उनमें विरोध की कल्पना नहीं करनी चाहिए । दक्षिणोत्तर के क्रम से दक्षिण दिशा पर्यन्त ११ रेखा का निर्माण करे । उसके मध्य में ८ रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर लिखे ॥३८ - ३९॥