सा भूतिनी कुण्डलधारिणी च सिन्दूरिणी चाप्यथ हारिणी च ।
नटी तथा चातिनटी च चैटी कामेश्वरी चापि कुमारिका च ॥
भूतिनी नाम की यक्षिणी बहुत से रुप धारण कर लेती है , जैसे कुण्डल धारण करन्जे वाली , सिन्दूर धारण करने वाली , हार पहनने वाली , नाचने वाली , अत्यन्त नृत्य करने वाली , चेटी , कामेश्वरी और कुमारी आदि रुपों में आती हैं ।
भूतिनी यक्षिणी का मंत्र निम्न है -
'' ॐ ह्रां क्रूं क्रूं कटुकटु अमुकी देवी वरदा सिद्धिदा च भव ओं अः ॥ ''
चम्पावृक्षतले रात्रौ जपेदष्ट सहस्रकम् ।
पूजनं विधिना कृत्वा दद्यात् गुग्गुलपधूकम् ॥
सप्तमेऽहि निशीथे च सा चागच्छिति भूतिनी ।
दद्यात् गन्धोदकेनार्घ्यतुष्टामातादिका भयेत् ॥
भूतिनी यक्षिणी का जप चम्पा वृक्ष के नीचे प्रतिदिन आठ हजार बार करें । सर्वप्रथम भूतिनी का पूजन करें , फिर गुग्गुल की धूप दें । ऐसा करने से सातवीं रात में भूतिनी आती है । जब वह आगमन करे तो उसे चन्दन मिश्रित जल से अर्घ्य दें । वह प्रसन्न होकर उसी रुप में परिणत हो जाती है , जिस रुप की कामना की है ।
मातेत्यष्टादशानां चं वस्त्रालंकार भोजनम् ।
भगिनी चेत्तदा नारीं दूरादा कृष्यक मुन्दरीम् ॥
रसं रसांजनं दिव्यं विधानं च प्रयच्छति ।
भार्यचपृष्ठमारोप्य स्वर्ग नयति कामिता ।
भोजनं कामिकं नित्य साधमाय प्रयच्छति ॥
जब साधक यक्षिणी को माता के रुप में सिद्ध करता है तो वह अठ्ठारह व्यक्तियों के वस्त्र , आभूषण और भोजन प्रतिदिन देती है । एक बहन के रुप में सिद्ध होने पर सुंदर स्त्रियों को दूर - दूर से लाकर देती है तथा रसपूर्ण दिव्य भोजन प्रदान करती है । पत्नी के रुप में सिद्ध होने पर वह साधक को अपनी पीठ पर बैठाकर स्वर्ग आदि लोकों का भ्रमण कराती है एवं भोजनादि के पदार्थ भी उपलब्ध कराती है ।
रात्रौ पुष्पेण गत्वा शुभा शय्योपकल्पयेत् ।
जाति पुष्पेण वस्त्रेण चन्दनेन च पूजयेत् ॥
धूपं गुग्गुलं दत्त्वा जपेदष्ट सहस्त्रकम् ।
जपान्ते शीघ्रमायाति चुम्बत्यालिंगयत्यपि ॥
सर्वालंकारसंयुक्ता संभोगादि समन्विता ।
कुबेरस्य गृहादेव द्रव्यमाकृष्य यच्छति ॥
रात्रि हो जाने पर मंदिर में आसन बिछाकर सजाएं तथा चमेली के पुष्प एवं चंदन आदि से पूजब्न करें और गुग्गुल की धूप देकर मंत्र का आठ हजार जप करें । जप की समाप्ति पर संपूर्ण अलंकारों से युक्त होकर यक्षिणी आगमन करती है और साधक का आलिंगन - चुम्बनादि करके उससे संभोग करती है तथा कुबेर के खजाने से धन लाकर उसे देती है ।