यक्षिणी साधना - मन्त्र प्रयोग १

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।


'' ॐ क्लीं ह्रीं ऐं ओं श्रीं महा यक्षिण्ये सर्वैश्वर्यप्रदात्र्यै नमः ॥ ''

इमिमन्त्रस्य च जप सहस्त्रस्य च सम्मितम् ।

कुर्यात् बिल्वसमारुढो मासमात्रमतन्द्रितः ॥

उपर्युक्त मन्त्र को जितेन्द्रिय होकर बेल वृक्ष पर चढ़कर एक मास पर्यन्त प्रतिदिन एक हजार बार जपें ।

सत्वामिषबलिं तत्र कल्पयेत् संस्कृत पुरः ।

नानारुपधरा यक्षी क्वचित् तत्रागमिष्यति ॥

मांस तथा मदिरा का प्रतिदिन भोग रखें , क्योंकि भांति - भांति का रुप धारण करने वाली वह यक्षिणी न जाने कब आगमन कर जाए ।

तां दृष्ट्वा न भयं कुर्याज्जपेत् संसक्तमानसः ।

यस्मिन् दिने बलिंभुक्तवा वरं दातुं समर्थयेत् ॥

जब यक्षिणी आगमन करे तो उसे देखकर डरना नहीं चाहिए , क्योंकि वह कभी - कभी भयंकर रुप में आ जाती है । उसके आगमन करने पर दृढ़ता पूर्वक रहें , डरें नहीं । अपने मन में जप करते रहें ।

तदावरान्वे वृणुयात्तांस्तान्वेंमनसेप्सितान् ।

धन्मानयितुं ब्रूयादथना कर्णकार्णिकीम् ॥

जिस दिन बलि ग्रहण करके वह ( यक्षिणी ) वर देने को तैयार हो , उस दिन जिस वर की कामना हो , उससे मांग लेना चाहिए , धन लाने को कहें अथवा कान में बात करने को कहें ।

भोगार्थमथवा ब्रूयान्नृत्यं कर्तुमथापि वा ।

भूतानानयितुं वापि स्त्रियतायितुं तथा ॥

भोग के लिए उससे नाचने के लिए कहें , प्राणियों को लाने की , स्त्रियों को लाने की बात कहें ।

राजानं वा वशीकर्तुमायुर्विद्यां यशोबलम् ।

एतदन्यद्यदीत्सेत साधकस्तत्तु याचयेत् ॥

राजा को वश में करने के लिए , आयु , विद्या एवं यश के लिए साधक को तत्क्षण वर मांग लेना चाहिए ।

चेत्प्रसन्ना यक्षिणी स्यात् सर्व दद्यान्नसंशयः ।

आसक्तस्तुद्विजैः कुर्यात् प्रयोग सुरपूजितम् ॥

प्रसन्न होकर यक्षिणी सब कुछ प्रदान करती है , इसमें संदेह नहीं हैं । यदि प्रयोग को स्वयं न कर सकें तो किसी ब्राह्मण से कराएं । यह यक्षिणी साधन देवताओं द्वारा बी किया गया है ।

सहायानथवा गृह्य ब्राह्मणान्साध्यें व्रतम् ।

तिस्त्रः कुमारिका भौज्याः परमन्नेन नित्यशः ॥

फिर अपने सहायकों को रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और प्रतिदिन तीन कुमारी कन्याओं को भी भोजन कराते रहें ।

सिद्धैधनादिके चैव सदा सत्कर्म आचरेत् ।

कुकर्मणि व्ययश्चेत् स्यात् सिद्धिर्गच्छतिनान्यथा ॥

धन इत्यादि की सिद्धि होने पर धन को अच्छे कार्यों में व्यय करें , नहीं तो सिद्धि छिन्न हो जाती हैं ।

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Last Updated : December 26, 2010

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