'' ॐ क्लीं ह्रीं ऐं ओं श्रीं महा यक्षिण्ये सर्वैश्वर्यप्रदात्र्यै नमः ॥ ''
इमिमन्त्रस्य च जप सहस्त्रस्य च सम्मितम् ।
कुर्यात् बिल्वसमारुढो मासमात्रमतन्द्रितः ॥
उपर्युक्त मन्त्र को जितेन्द्रिय होकर बेल वृक्ष पर चढ़कर एक मास पर्यन्त प्रतिदिन एक हजार बार जपें ।
सत्वामिषबलिं तत्र कल्पयेत् संस्कृत पुरः ।
नानारुपधरा यक्षी क्वचित् तत्रागमिष्यति ॥
मांस तथा मदिरा का प्रतिदिन भोग रखें , क्योंकि भांति - भांति का रुप धारण करने वाली वह यक्षिणी न जाने कब आगमन कर जाए ।
तां दृष्ट्वा न भयं कुर्याज्जपेत् संसक्तमानसः ।
यस्मिन् दिने बलिंभुक्तवा वरं दातुं समर्थयेत् ॥
जब यक्षिणी आगमन करे तो उसे देखकर डरना नहीं चाहिए , क्योंकि वह कभी - कभी भयंकर रुप में आ जाती है । उसके आगमन करने पर दृढ़ता पूर्वक रहें , डरें नहीं । अपने मन में जप करते रहें ।
तदावरान्वे वृणुयात्तांस्तान्वेंमनसेप्सितान् ।
धन्मानयितुं ब्रूयादथना कर्णकार्णिकीम् ॥
जिस दिन बलि ग्रहण करके वह ( यक्षिणी ) वर देने को तैयार हो , उस दिन जिस वर की कामना हो , उससे मांग लेना चाहिए , धन लाने को कहें अथवा कान में बात करने को कहें ।
भोगार्थमथवा ब्रूयान्नृत्यं कर्तुमथापि वा ।
भूतानानयितुं वापि स्त्रियतायितुं तथा ॥
भोग के लिए उससे नाचने के लिए कहें , प्राणियों को लाने की , स्त्रियों को लाने की बात कहें ।
राजानं वा वशीकर्तुमायुर्विद्यां यशोबलम् ।
एतदन्यद्यदीत्सेत साधकस्तत्तु याचयेत् ॥
राजा को वश में करने के लिए , आयु , विद्या एवं यश के लिए साधक को तत्क्षण वर मांग लेना चाहिए ।
चेत्प्रसन्ना यक्षिणी स्यात् सर्व दद्यान्नसंशयः ।
आसक्तस्तुद्विजैः कुर्यात् प्रयोग सुरपूजितम् ॥
प्रसन्न होकर यक्षिणी सब कुछ प्रदान करती है , इसमें संदेह नहीं हैं । यदि प्रयोग को स्वयं न कर सकें तो किसी ब्राह्मण से कराएं । यह यक्षिणी साधन देवताओं द्वारा बी किया गया है ।
सहायानथवा गृह्य ब्राह्मणान्साध्यें व्रतम् ।
तिस्त्रः कुमारिका भौज्याः परमन्नेन नित्यशः ॥
फिर अपने सहायकों को रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और प्रतिदिन तीन कुमारी कन्याओं को भी भोजन कराते रहें ।
सिद्धैधनादिके चैव सदा सत्कर्म आचरेत् ।
कुकर्मणि व्ययश्चेत् स्यात् सिद्धिर्गच्छतिनान्यथा ॥
धन इत्यादि की सिद्धि होने पर धन को अच्छे कार्यों में व्यय करें , नहीं तो सिद्धि छिन्न हो जाती हैं ।