धनदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग
'' ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धनं मम देहि देहि स्वाहा ॥ ''
अश्वत्थवृक्षमारुह्य जपेदेकाग्रमानसः ।
धनदाया यक्षिण्या च धनं प्राप्नोति मानवः ॥
धन देने वाली यक्षिणी का जप पीपल के वृक्ष पर बैठकर एकाग्रतापूर्वक करना चाहिए । इससे धनदादेवी प्रसन्न होकर धन प्रदान करती हैं ।
पुत्रदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग
'' ॐ ह्रीं ह्रीं हूं रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ''
इस मन्त्र को दस हजार बार जपना चाहिए ।
चूतवृक्षं समारुह्य जपेदेकाग्र मानस ।
अपुत्रो लभते पुत्रं नान्यथा मम भाषितम् ॥
पुत्र की इच्छा करने वाले व्यक्ति को आम के वृक्ष के ऊपर चढ़कर जप् करना चाहिए तब पुत्रदा यक्षिणी प्रसन्न होकर पुत्र प्रदान करती है ।
महालक्ष्मी यक्षिणी मन्त्र प्रयोग
'' ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॥ ''
वटवृक्षे समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
सा लक्ष्मी यक्षिणी च स्थितालक्ष्मीश्च जायते ॥
वट वृक्ष ( बरगद के वृक्ष ) पर ऊपर ( किसी मोटी शाखा पर ) बैठकर एकाग्र मन से महालक्ष्मी यक्षिणी का दस हजार जप करें तो लक्ष्मी स्थिर होती है और साधक को सफलता मिलती है ।
जया यक्षिणी मन्त्र प्रयोग
'' ॐ ऐं जया यक्षिणायै सर्वकार्य साधनं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ''
अर्कमूले समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
यक्षिणी च जया नाम सर्वकार्यकरी मता ॥
आक की मूल के ऊपर बैठकर उपरोक्त मन्त्र का जप करने से जया नामक यक्षिणी प्रसन्न होकर सब कार्यों को सिद्ध करती हैं ।
गुप्तेन विधिना कार्य प्रकाश नैव कारयेत् ।
प्रकाशे बहुविघ्नानि जायते नात्र संशयः ॥
प्रयोगाश्चानुभूतोऽयं तस्मद्यत्नं समाचरेत् ।
निर्विघ्नेन विधानेन भवेत् सिद्धिरनुत्तमा ॥
यक्षिणियों की साधना सदैव गुप्त रुप से ही करनी चाहिए , प्रकट रुप से करने में विघ्नों का भय रहता है तथा प्रयोग सिद्ध नहीं हो पाते , निर्विघ्न विधान से सिद्धि की प्राप्ति अवश्य होती हैं ।