यक्षिणी साधना - मन्त्र प्रयोग २

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।


धनदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

'' ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धनं मम देहि देहि स्वाहा ॥ ''

अश्वत्थवृक्षमारुह्य जपेदेकाग्रमानसः ।

धनदाया यक्षिण्या च धनं प्राप्नोति मानवः ॥

धन देने वाली यक्षिणी का जप पीपल के वृक्ष पर बैठकर एकाग्रतापूर्वक करना चाहिए । इससे धनदादेवी प्रसन्न होकर धन प्रदान करती हैं ।

 

पुत्रदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

'' ॐ ह्रीं ह्रीं हूं रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ''

इस मन्त्र को दस हजार बार जपना चाहिए ।

चूतवृक्षं समारुह्य जपेदेकाग्र मानस ।

अपुत्रो लभते पुत्रं नान्यथा मम भाषितम् ॥

पुत्र की इच्छा करने वाले व्यक्ति को आम के वृक्ष के ऊपर चढ़कर जप् करना चाहिए तब पुत्रदा यक्षिणी प्रसन्न होकर पुत्र प्रदान करती है ।

 

महालक्ष्मी यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

'' ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॥ ''

वटवृक्षे समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।

सा लक्ष्मी यक्षिणी च स्थितालक्ष्मीश्च जायते ॥

वट वृक्ष ( बरगद के वृक्ष ) पर ऊपर ( किसी मोटी शाखा पर ) बैठकर एकाग्र मन से महालक्ष्मी यक्षिणी का दस हजार जप करें तो लक्ष्मी स्थिर होती है और साधक को सफलता मिलती है ।

 

जया यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

'' ॐ ऐं जया यक्षिणायै सर्वकार्य साधनं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ''

अर्कमूले समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।

यक्षिणी च जया नाम सर्वकार्यकरी मता ॥

आक की मूल के ऊपर बैठकर उपरोक्त मन्त्र का जप करने से जया नामक यक्षिणी प्रसन्न होकर सब कार्यों को सिद्ध करती हैं ।

गुप्तेन विधिना कार्य प्रकाश नैव कारयेत् ।

प्रकाशे बहुविघ्नानि जायते नात्र संशयः ॥

प्रयोगाश्चानुभूतोऽयं तस्मद्यत्नं समाचरेत् ।

निर्विघ्नेन विधानेन भवेत् सिद्धिरनुत्तमा ॥

यक्षिणियों की साधना सदैव गुप्त रुप से ही करनी चाहिए , प्रकट रुप से करने में विघ्नों का भय रहता है तथा प्रयोग सिद्ध नहीं हो पाते , निर्विघ्न विधान से सिद्धि की प्राप्ति अवश्य होती हैं ।

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Last Updated : December 26, 2010

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