संजय n. लोकाक्षि नामक शिवावतार का एक शिष्य।
संजय (गावल्गणि) n. धृतराष्ट्र राजा का सारथि, एवं सलाहगार मंत्री, जो सूत जाति में उत्पन्न हुआ था, एवं गवल्गण नामक सूत का पुत्र था
[म. आ. ५७.८२] । गवल्गण का पुत्र होने के कारण, इसे ‘गावल्गणि’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ था । यह उन ‘वातिक’ व्यवसायी लोगों में से था, जो महाभारतकाल में वृत्तनिवेदन वं वृत्तप्रसारण का काम करते थे (वातिक देखिये) । यह वेद व्यास का कृपापात्र व्यक्ति था, एवं अर्जुन एवं कृष्ण का बड़ा भक्त था । दुर्योधन के अत्याचारों का यह आजन्म जो से प्रतिवाद करता रहा। यह स्वामिभक्त, बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ एवं धर्मज्ञ था । यह धार्मिक विचारवाला स्वामिभक्त मंत्री था, जिसने सत्य का अनुकरण कर सदैव सत्य एवं सच्ची बातें धृतराष्ट्र से कथन की।
संजय (गावल्गणि) n. धृतराष्ट्र के प्रतिनिधि के नाते, यह युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपस्थित था, जहाँ युधिष्ठिर ने इसे राजाओं की सेवा तथा सत्कार में नियुक्त किया था
[म. स. ३२.५] । धृतराष्ट्र के आदेश से, काम्यकवन में गये विदुर को बुलाने के लिए यह गया था
[म. व. ७] । भारतीय युद्ध के पूर्व, धृतराष्ट्र के राजदूत के नाते यह उपप्लव्य नगरी में पांडवों से मिलने गया था । उपप्लव्य नगरी में संजय के द्वारा किये गये दौत्यकर्म का सविस्तृत वृत्तांत महाभारत के ‘संजययानपर्व’ में प्राप्त है
[म. उ. २२-३२] । अपने इस दौत्य के समय केवल राजदूत के नाते ही नहीं, बल्कि पांडवों के सच्चे मित्र के नाते, इसने उन्हें शान्ति का उपदेश दिया । इसने उन्हें कहा, ‘संधि ही शांति का सर्वोत्तम उपाय है । धृतराष्ट्र राजा भी शांति चाहते हैं, युद्ध नहीं’। युधिष्ठिर ने संजय के उपदेश को स्वीकार तो किया, किन्तु यह शर्त रक्खी कि, यदि धृतराष्ट्र शान्ति चाहते हैं, तो इंद्रप्रस्थ का राज्य पांडवों को लौटा दिया जाय।
संजय (गावल्गणि) n. हस्तिनापुर लौटते ही इसने सर्वप्रथम धृतराष्ट्र की एकांत में भेंट ली, एवं उसे युद्ध टालने के लिए पुनः एक बार उपदेश दिया । इसने धृतराष्ट्र से कहा, ‘आनेवाले युद्ध में केवल कुरुकुल का ही नहीं बल्कि समस्त प्रजा का भी नाश होगा, यह निश्चित है । विनाशकाल समीप आने पर बुद्धि मलिन हो जाती है, एवं अन्याय भी न्याय के समान दिखने लगता है । अपने पुत्रों की अन्धी ममता के कारण आज तुम युद्ध के समीप आ गये हों। युद्ध टालने का मौका अब हाथ से निकलता जा रहा है, तुम हर प्रयत्न कर पांडवों से संधि करो’। दूसरे दिन, धृतराष्ट्र के खुली राज्यसभा में इसने युधिष्ठिर का शान्तिसंदेश कथन किया, एवं पांडव पक्ष के सैन्य आदि का आखों देखा हाल भी कथन किया । इस कथन में इसने अर्जुन एवं कृष्ण के स्नेहसंबंध पर विशेष जोर दिया, एवं कहा कि, कृष्ण की मैत्री पांडवों की सबसे बड़ी सामर्थ्य है
[म. उ. ६६] ।
संजय (गावल्गणि) n. पश्चात् यह पुनः एक बार धृतराष्ट्र के अंतःपुर गया, एवं वेदव्यास, गांधारी एवं विदुर की उपस्थिति में, इसने धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण का माहात्म्य विस्तृत रूप में कथन किया । इसने कहा, ‘श्रीकृष्ण साक्षात् ईश्र्वर का अवतार है, एवं मरे ज्ञानदृष्टि के कारण मैनें उसके इस रूप को पहचान लिया है । मैनें सारे आयुष्य में कभी कपट का आश्रय नहीं लिया, एवं किसी मिथ्या धर्म का आचरण भी नहीं किया । इस प्रकार ध्यानयोग के द्वारा मेरा अंतःकरण शुद्ध हो गया है, एवं उसी साधना के कारण, श्रीकृष्ण के सही स्वरूप का ज्ञान मुझे हो पाया है’। इसने आगे कहा, ‘प्रमाद, हिंसा एवं भोग, इन तीनों के त्याग से परम पद की प्राप्ति, एवं श्रीकृष्ण का दर्शन शक्य है । इसी कारण तुम्हारा यही कर्तव्य है कि, इसी ज्ञानमार्ग का आचरण कर तुम मुक्ति प्राप्त कर लो
[म. उ. ६७.६९] ।
संजय (गावल्गणि) n. भारतीय युद्ध के समय, युद्ध देखने के लिए व्यास ने धृतराष्ट्र को दिव्यदृष्टि देना चाहा, किन्तु धृतराष्ट्र ने उसे इन्कार किया; क्यों कि आपस में ही होनेवाले इस भयंकर संहार को नहीं देखना चाहता था । तदुपरांत व्यास ने संजय को दिव्यदृष्टि का वरदान दिया, जिस कारण, युद्ध में घटित होनेवाली सारी घटनाओं का हाल, यह धृतराष्ट्र से कथन करने में समर्थ हुआ। इस दिव्यदृष्टि के बल से, सामने की अथवा परोक्ष की, दिन रात में होनेवाली, तथा दोनों पक्षों के मन में सोची हुई बाते इसे ज्ञात होने लगीं। इसी वरदान के साथ साथ, युद्ध में अवध्य एवं अजेय रहने का, एवं अत्यधिक परिश्रम करने पर भी थकान प्रतीत न होने का आशीर्वाद भी व्यास के द्वारा इसे प्राप्त हुआ था
[म. भी. ४६.८-९] ।
संजय (गावल्गणि) n. इसने धृतराष्ट्र से भारतीय युद्ध का जो वर्णन सुनाया, वह युद्धक्षेत्रीय वृत्तनिवेदन का एक आदर्श रूप माना जा सकता है । कौन वीर किससे लड़ रहा है, कौन से वाहन पर वह सवार है, एवं कौन से अस्त्रों का प्रयोग वह कर रहा है, इन सारी घटनाओं की समग्र जानकारी संजय के वृत्तनिवेदन में पायी जाती है । संजय के वृत्तानिवेदनकौशल्य की चरम सीमा इसके ‘भगवद्गीता निवेदन’ में दिखाई देती है, जहाँ श्रीकृष्ण का सारा तत्त्वज्ञान ही नहीं, बल्कि उसके हावभाव, मुखमुद्रा भी प्रत्यक्ष की भाँति पाठकों के सामने खड़ी हो जाती है ।
संजय (गावल्गणि) n. भारतीय युद्ध में, केवल वृत्तनिवेदक के नाते ही नहीं, बल्कि एक योद्धा के नाते भी इसने भाग लिया था । इसने धृष्टद्युम्न पर आक्रमण किया था, जिसमें यह उससे परास्त हुआ था । सात्यकि ने भी इसे एक बार मूर्च्छित किया था, एवं जीते जी इसे बन्दी बनाया था । आगे चल कर व्यास की कृपा से यह सात्यकि के कैदखाने से विमुक्त हुआ था
[म. श. २४.५०-५१] । युद्धभूमि से धृतराष्ट्र को उद्देश्य कर अपने सारे संदेश दुर्योधन इसीके ही द्वारा भेजा करता था
[म. श. २८.४८-४९] । इससे प्रतीत होता है कि, यह युद्धभूमि में स्वयं उपस्थित था । संभव है, यह युद्धभूमि की सारी घटनाएँ दिन में देख कर, रात्रि के समय धृतराष्ट्र को बताता रहा हो।
संजय (गावल्गणि) n. युद्ध समाप्त हो जाने बाद, इसकी दिव्यदृष्टि विनष्ट हुई
[म. सौ. ९.५८] । युधिष्ठिर के राज्यारोहण के पश्चात्, उसने इस पर राज्य के आयव्यय निरीक्षण का कार्य सौंप दिया था
[म. शां. ४१.१०] ।
संजय (गावल्गणि) n. अंत में विदुर की सलाह से यह धृतराष्ट्र एवं गांधारी के साथ वन में चला गया
[भा. १.१३.२८-५७] । यह वन में धृतराष्ट्र की हर प्रकार की सेवा करता था, एवं उसके साथ विभिन्न विषयों पर वादसंवाद भी करता था । एक बार वन में लग गये दावानल में धृतराष्ट्र फँस गया । उस समय उसे बचाने की कोशिश इसने की, किंतु इसे सारे प्रयत्न असफल होने पर, इसने धृतराष्ट्र से अपना कर्तव्य पूछा। उस समय धृतराष्ट्र ने इससे कहा, ‘मरे जैसे वानप्रस्थियों के लिए यह मृत्यु अनिष्टकारी नहीं है, बल्कि उत्तम ही है । तुम जैसे गृहस्थ धर्मियों के लिए इस प्रकार आत्मघात करना उचित नहीं है, अतः मेरी यह इच्छा है, कि तुम यहा से भाग जाओं’। धृतराष्ट्र के कथनानुसार यह दावानल से निकल पड़ा। पश्चात् धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुन्ती के साथ भस्म हुआ। पश्चात् इसने गंगातट पर रहनेवाले तपस्वियों को धृतराष्ट्र केदग्ध होने का समाचार सुनाया, एवं यह हिमालय की ओर चला गया
[म. आश्र्व. ४५.३३] ।
संजय II. n. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जो वायु के अनुसार प्रतिपद राजा का, एवं भागवत के अनुसार प्रति राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम जय था । विष्णु में प्रतिक्षत्र राजा के पुत्र का नाम ‘संजय’ नहीं, बल्कि सृंजय दिया गया है
[विष्णु. ४.९.२६] ।
संजय III. n. (सो. अनु.) अनुवंशीय सृंजय राजा का नामान्तर।
संजय IV. n. (सो. नील) नीलवंशीय पांचाल सृंजय राजा का पुत्र (सृंजय ७. देखिये) ।
संजय IX. n. (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो वायु, विष्णु एवं भागवत के अनुसार रणंजय का, एवं मत्स्य के अनुसार रणेजय राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम शुद्धोद था
[वायु. ९९.२८८] ;
[मत्स्य. २७१.११] ।
संजय V. n. (सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो विष्णु के अनुसार सुपार्श्र्व राजा का पुत्र था । भागवत में इसे चित्ररथ कहा गया है ।
संजय VI. n. सौवीर देश का एक राजकुमार, जो विदुला नामक रानी का पुत्र था । इसके पिता की मृत्यु के पश्चात्, इस अल्पवयी राजा पर सिंधुराजा ने आक्रमण कर, इसे रणभूमि से भागने पर विवश किया । उस समय इसकी माता विदुला ने बहुमूल्य उपदेश प्रदान कर, इसे पुनः एक बार युयुत्सु बनाया । विदुला के द्वारा इसे किया गया राजनीति पर उपदेश महाभारत में ‘विदुला-पुत्र संवाद’ नामक उपाख्यान में प्राप्त है
[म. उ. १३१-१३४] ; विदुला देखिये ।
संजय VII. n. एक राजकुमार, जो सिंधु नरेश वृद्धक्षत्र का पुत्र, एवं जयद्रथ के ग्यारह भाइयों में से एक था
[म. व. २४९.१०] । जयद्रथ के द्वारा किये गये द्रौपदी-हरण के युद्ध में यह अर्जुन के द्वारा मारा गया
[म. व. २५५.२७] ।
संजय VIII. n. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक ।
संजय X. n. ०. एक व्यास, जो वाराह कल्पान्तर्गत वैवस्वत मन्वंतर के सोलहवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ था
[वायु. २३.१७१] ।