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कच

   { kacḥ, kaca }
Script: Devanagari

कच     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
KACA   The first son of Bṛhaspati. That extremely beautiful boy was a great favourite of the devas.
1) Genealogy.
Descending in order from Viṣṇu-- Brahmā--Aṅgiras--Bṛhaspati--Kaca.
2) How he studied the secret of Mṛtasañjīvanī.
The Devas and Asuras always quarrelled with each other. Devas accepted Bṛhaspati as their guru and the asuras made Śukrācārya their guru. Śukrācārya knew an art which Bṛhaspati did not know, the secret of Mṛtasañjīvanī. When the devas cut the Asuras to pieces, Śukrācārya used to bring them back to life by his knowledge of Mṛtasañjīvanī. Mṛtasañjīvanī is the art of reviving the dead. Devas were at a loss to know what to do. They wanted to learn the secret of Mṛtasañjīvanī from Śukrācārya somehow. It was imperative that they should learn it. Then they found out a way. They sent Kaca, son of Bṛhaspati, to Śukrācārya. Kaca went to Śukrācārya and told him that he was the son of Bṛhaspati and had come to him to be his disciple for a period of a thousand years doing service to him. The modesty of the boy appealed to Śukrācārya and he accepted Kaca as his disciple. Devayānī, daughter of Śukrācārya, fell in love with Kaca. They were always together as an inseparable couple. Asuras did not like the advent of Kaca to the Āśrama of Śukrācārya. They knew that he had come to study the secrets of the Asuras. Once Kaca went alone to look after the cows and the Asuras followed him stealthily. When Kaca entered deep into the forest the Asuras killed him and gave him to the wolves. It became dusk. The cows returned to the Āśrama without the cowherd. Devayānī waited for a long time for Kaca to come. Not seeing him Devayānī went weeping to her father and said, “Oh, father, the sun has set. You have performed your nightly fire sacrifice. The cattle have come back by themselves and still Kaca has not returned home. I fear he is dead or has been killed. I cannot live without him.” The affectionate Śukrācārya could not bear the sight of his dear daughter weeping and so he went to the forest with Devayānī and employing the art of Sañjīvanī he invoked the dead youth to appear. At once Kaca came back to life and stood before them. All the three then returned to the āśrama happily. The anger of the Asuras against Kaca knew no bounds. On another occasion the Asuras seized him and after killing him pounded his body into a paste and mixed it up in sea-water. This time also, at the request of Devayānī, Śukrācārya brought him back to life. The third time the Asuras burnt the body of Kaca and mixed the ashes in wine and served it to Śukrācārya to drink. The disciple thus went inside the belly of the guru. Dusk came, the cattle came and still Kaca did not return and Devayānī reported the matter to her father. Śukrācārya sat for some time in meditation and then he knew that Kaca was in his own stomach. If he got Kaca out, he would burst his stomach and Śukra would die and if he did not get him out his daughter would burst her heart and die. Śukrācārya was in a fix. He asked Kaca how he got in and he replied that it was through the wine. Śukra imparted to Kaca the art of Mṛtasañjīvanī and Kaca lying within the stomach repeated it. Then Śukrācārya called Kaca by name and Kaca came out bursting the stomach of his guru. The preceptor lay dead and by employing the art of Mṛtasañjīvanī he had learnt, Kaca brought his guru to life. Śukrācārya eschewed wine from that day onwards and declared it as a forbidden drink to brahmins. Śukrācārya said that because Kaca was reborn from his stomach he must be deemed his son.
3) Kaca was cursed.
Kaca remained for some more time under the tutelage of Śukrācārya and when his education became complete he took leave of his preceptor and also Devayānī. Devayānī followed him for a long distance from the hermitage and requested him to marry her. Kaca replied he could not do so because he had become a brother to Devayānī. Devayānī got angry and cursed him saying that he would not be able to use the art of Mṛtasañjīvanī he had learnt from her father. Kaca cursed her back saying that none of the sons of sages would marry her. Kaca however felt relieved that though he would not be able to practise the art, his disciples would be able to do so. He went back to Devaloka and was heartily welcomed by all the Devas. He then imparted the art of Mṛtasañjīvanī to the devas. [Chapters 76 and 77, Ādi Parva, M.B.] .
4) Kaca visits Bhīṣma.
Kaca was also one among the several people who visited Bhīṣma while the latter was lying on a bed of arrows awaiting death. [Śloka 9, Chapter 47, Śānti Parva, M.B.] .

कच     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  बृहस्पति का पुत्र   Ex. कच शुक्राचार्य के पास अनैतिकता की कला सीखने गए थे ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benকচ
gujકચ
kasکچ
kokकच
malകചൻ
marकच
oriକଚ
panਕਚ
sanकचः
tamகச்
urdکچ

कच     

कच n.  एक महर्षि [म.अनु.२६.८]
कच II. n.  वर्तमान मन्वन्तर में अंगिरापुत्र बृहस्पति का पुत्र । परंतु इसकी माता कौन थी इसका पता नहीं चलता है क्यो कि, बृहस्पति की शुभा तथा तारा नामक दोनों स्त्रियों की संतति में इसका नाम नहीं है ।
कच II. n.  एक बार देव एवं दैत्यों मैं त्रैलोक्य का आधिपत्य तथा ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये तुमुल युद्ध हुआ । उसमें दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या के कारण मृत राक्षसों को तत्काल जीवित कर देते थे । इस कारण दैत्यों की शक्ति कम नहीं होती थी । देवगुरु बृहस्पति को यह विद्या प्राप्त न होने के कारण, देवताओं का बहुत नुकसान होता था । तब इन्द्र तथा अन्य देवताओं ने कच से प्रार्थना कर कहा, कि तुम शुक्राचार्य तथा उसकी तरुण कन्या देवयानी को प्रसन्न कर, संजीवनी विद्या सीख कर आवो । तुम्हारा शील, सौंदर्य, माधुर्य, मनोनिग्रह तथा आचरण देवयानी को प्रसन्न करने के साधन है । देवयानी को वश करने का कारण यही है कि, यदि वह प्रसन्न हो गयी तो विद्याप्राप्ति में विलंब न होगा क्यों कि, देवयानी शुक्राचार्य का दूसरा प्राण है । यह बता कर देवताओं ने उसे आशीर्वाद दिया ।
कच II. n.  कच विद्यासंपादन के लिये देवताओं को छोड कर शुक्राचार्य के पास आया । शुक्राचार्य ने पूछा, ‘तुमे कौन हो? कहॉं से आये हो?’ तब कच ने बडी नम्रता से कहा, ‘मैं बृहस्पतिपुत्र कच हूँ तथा विद्यासंपादन के हेतु आया हूँ ।’ शुक्राचार्य ने उसे अतिथि समझ कर तथा गुरुपुत्र होने के कारण, वंदनीय मान कर अपने पास रख लिया । तत्पश्चात् वह गुरुभक्ति से तथा ब्रह्मचर्य से सेवा करने लगा । शुक्राचार्य की तरुण कन्या देवयानी के मनोरंजन के लिये कच, गाना, वाद्य बजाना, नाचना, पुष्प तथा फल लाना एवं बताये हुए काम तथा गायें चराना आदि काम करने लगा । इस प्रकार शुक्राचार्य तथा उसकी प्रिय कन्या देवयानी के कार्य में कहीं भी न्यूनता न रखते हुए, कडे ब्रह्मचर्यव्रत से कच ने उन की ५०० वर्षो तक उत्तम सेवा की । इससे आचार्य उस पर प्रसन्न हो गये, तथा देवयानी तो उसे अपना बहिश्वर प्राण समझने लगी ।
कच II. n.  १. देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच अपने आचार्य के पास विद्या संपादनार्थ आया है । अवश्य ही यह संजीवनी विद्या संपादन करने के लिये आया होगा, यह सोच कर दैत्यों ने उसका वध करने का निश्चय किया । एक दिन उन्हों ने उसे गौओं को चराते हुए देखा । क्रोधावशात् उन्हों ने इसे पकडा तथा इसके शरीर के खंडशः टुकडे कर सियारों को खिला दिये तथा वे वापस अपने स्थान पर लौट आये । इधर सूर्यास्त होने पर भी कच घर लौट नहीं आया, यह देख कर देवयानी ने यह खबर पिता तक पहुँचाई । इस पर शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या का प्रयोग किया । तत्काल सियारों के शरीर फाड कर कच सजीव हो कर आचार्य तथा देवयानी के समक्ष आ कर खडा हो गया । कच को आया जान कर देवयानी ने विलंब का कारण पूछा । तब उसने दैत्यों का सारा कृत्य उसे बताया । २. एक बार पुनः देवयानी के कथनानुसार जब कच अरण्य में गया था, तब राक्षसों ने उसे देखा । पुनः उसके टुकडे कर के, उन्होंने समुद्र में फेंक दिये । इस समय भी पिता को बता कर देवयानी ने इसे पूर्ववत् सजीव कराया । ३. इस समय इसे मार कर, इसका चूर्ण बना कर राक्षसों ने जलाया सुरा के पात्र में वह रक्षा मिलाई । वही पात्र शुक्राचार्य को पीने के लिये दिया तथा अपने अपने घर चले गये ।
कच II. n.  दिन का अवसान हो गया । रात हुई, किन्तु कच नहीं आया । यह देख, देवयानी ने पिता से कहा कि, अभी तक कच नहीं आया । हो न हो, उसे अवश्य राक्षसों ने मार डाला होगा । उसे तत्काल जीवित कर के आश्रम में लाने के लिये, देवयानी हठ करने लगी । तब शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा कि, बार बार जीवित करने पर भी कच की मृत्यु हो जाती है, इस लिये भला मैं क्या कर सकता हूँ? अब तुम रुदन मत करो । कच की मृत्यु के लिये दुःख मनाने का अब कुछ प्रयोजन नहीं है । तब देवयानी ने उसके रुपगुणों का रसभरा वर्णन किया एवं शोकावेग्न से वह प्राणत्याग करने के लिये प्रवृत्त हो गई । देवयानी का यह अविचारी कृत्य देख कर शुक्राचार्य असुरों को बुला लाये । तथा उनसे बोला, “मेरे पास विद्याप्राप्ति के हेतु आये हुए मेरे शिष्य को मार कर तुम लोग क्या मुझे अब्राह्मण बनाना चाहते हो? तुम्हारे पापों का घडा भर गया । प्रत्यक्ष इन्द्र आदि का भी घात ब्रह्महत्या के कारण होगा है फिर तुम्हारी क्या हस्ती?" क्रोध से ऐसा कह कर, शुक्राचार्य ने कच को पुकारा । तब संजीवनी विद्या के प्रभाव से शुक्राचार्य के उदर में जीवित कच ने वह उदर में किस प्रकार आया, तथा दैत्यों ने किस प्रकार उसे मारा वह बताया । तदनंतर उसने कहा, ‘गुरुहत्या के पाप का भागीदार मैं न बनूँ तथा देवयानी का मेरा एवं संपूर्ण विश्व का अकल्याण न हो, इस हेतु से मैं गर्भवास ही स्वीकार करता हूँ’। तब शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा, ‘अगर तुम्हें कच चाहिये तो मेरा वध होना आवश्यक है । अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ तो उदरगत कच का बाहर आना असंभव है’ तब देवयानी ने कहा कि, ‘तुम दोनों मुझे प्रिय हो । दोनों में से किसी का भी विरह मेरे लिये दुखदायी ही होगा’। प्रथमतः शुक्राचार्य ने कच को उदर में, संजीवनी विद्या का उपदेश किया तथा बाहर आने के बाद अपने को जीवित करने के लिये कहा । तदनंतर संजीवनीविद्याप्राप्त कच शुक्राचार्य का उदरविदारण कर बाहर आया तथा उसी विद्या से तत्काल उसने शुक्राचार्य को जीवित क्रिया । अपना पिता शुक्राचार्य तथा कच दोनों को जीवित देख कर, देवयानी को अत्यंत आनंद हुआ । सुरापान के कारण यह भी समझ में न आया कि, मैं कच की राख पी रहा हूँ । इसके लिये शुक्राचार्य को अत्यंत खेद हुआ । सुरादेवी पर क्रोधित हो कर शुक्राचार्य ने मद्यपान पर निम्नलिखित निर्बध लगा दिया। “जो ब्राह्मण आज से भविष्य में व्यसनी लोगों के चंगुल में फँस कर मुर्वत से अथवा मूर्खता से सुरापान करेगा, वह धर्मभ्रष्ट हो कर ब्रह्महत्या के पातक का भागीदार बनेगा । उसे इहपरलोक में अप्रतिष्ठा तथा अनंत कष्ट भोगने पडेंगे।” इस प्रकार धर्ममर्यादा स्थापित कर के उसने दैत्यों से कहा, ‘तुम्हारी मूर्खता के कारण मेरे प्रिय शिष्य कच को यह संजीवनी विद्या प्राप्त हो गई । इस प्रकार हजार वर्षो तक गुरु के पास रहने के बाद कच ने देवलोक में जाने के लिये गुरु की आज्ञा मांगी । शुक्राचार्य ने कच को जाने की आज्ञा दी । कच देवलोक जा रहा है यह देख कर, देवयानी ने उससे प्रार्थना की । ‘हम दोनों समान कुलशीलवाले है । मेरी तुम पर अत्यंत प्रीति है । इस प्रीति के कारण ही तीन बार राक्षसों द्वारा मारे जाने पर भी मैंने तुम्हें जीवित किया, इसलिये मेरा पाणिग्रहण किये बिना तुम्हारा देवलोक जाना ठीक नही है’। कच ने उसे बहुत ही समझाया, कि हम दोनों का जन्म एक ही उदर से होने के कारण धर्मदृष्टि से तुम मेरी गुरुभगिनी हो । तस्मात् तुम मुझे गुरु के समान पूज्य हो । इतना कहने पर भी देवयानी ने अपना हठ नहीं छोडा । तब कच ने कहा, ‘अपने पुत्र के भॉंति तुमने मुझे प्यार किया । तुम्हारा तथा मेरा जन्म एक ही पिता से हुआ है, अतएव तुम मेरे द्वारा पाणिग्रहण की कामना मत करो’ इतना कह कर कच ने देवयानी को दृढ मनोभाव से शुक्राचार्य की सेवा करने के लिये कहा तथा उससे आशीर्वाद मांगा ।
कच II. n.  भग्नमनोरथ देवयानी ने अत्यंत संतप्त हो कर उसे शाप दिया कि, मेरी प्रार्थना अमान्य कर बडे अहंकार से, जो विद्या प्राप्त कर तुम जा रहे हो वह तुम्हें कभी फलद्रूप न होगी । तब कच ने शांति से कहा, ‘चूँकि तुम गुरुभगिनी हो एवं मैं सात्त्विक ब्राह्मण हूँ, मैं तुम्हें प्रतिशाप नहीं देता । यह शाप कामविकारजन्य है । अर्थात् तुम्हारा वरण ब्राह्मण पुत्र करे, यह तुम्हारी इच्छा कभी सफल नहीं हो सकती । मेरी विद्या मुझे फलद्रूप नहीं होगी, ऐसा शाप तुमने दिया । ठीक है । जिसे यह विद्या में सिखाऊँगा, उसे वह फलद्रूप होगी’।
कच II. n.  इतना कह कच देवायानी से विदा ले कर देवलोक गया । इस प्रकार विद्या संपादन कर के जब वह देवलोक वापस आया-तब देवों ने तथा इन्द्र ने इसका स्वागत किया तथा यज्ञ का भाग इसे दिया [म.आ.७१.७२] ;[मत्स्य. २५-२६]

कच     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  बृहस्पतीचो पूत   Ex. कच शुक्राचार्या कडेन अनितिकतायेची कला शिकपाक गेल्लो
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benকচ
gujકચ
hinकच
kasکچ
malകചൻ
marकच
oriକଚ
panਕਚ
sanकचः
tamகச்
urdکچ

कच     

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English
3 Fearful yielding or drawing back. v खा. 4 m A dint. 5 A clamorous dispute, a brawl, brabble, jangle: also any noisy clashing with sticks. 6 A notch. v पाड.

कच     

Aryabhushan School Dictionary | Marathi  English
 f  A strait; grittiness.
 m  A dint; a brawl; a notch.

कच     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  बृहस्पतीचा पुत्र   Ex. कच हे शुक्राचार्याजवळ अनैतिकतेची कला शिकण्यास गेले होते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benকচ
gujકચ
hinकच
kasکچ
kokकच
malകചൻ
oriକଚ
panਕਚ
sanकचः
tamகச்
urdکچ
See : कचकच

कच     

 पु. केंस ( उच्चार तालव्य ) ' दुःखासनें धरिले कच । तेणेंचि वाढली कचकच । ' - एभा १ . २१० . ' तूं मलिन कुटिल निरस जडहि पुनर्भवपणेंहि कचसा च । ' - मोआदि ९ . ६३ . ( सं .)
 पु. ठोकर ; पोंचा ; खोंक ; खळगा . करकोचा ; खांच ; छिद्र . ( क्रि० पाडणें ). ' झाडास कच पाडल्यानें ... ... तेलकट राळेसारखा रस वाहतो .' - सेंपू १ . ९७ . ( का . कच्चा = खांच )
 स्त्री. ( च चा उच्चार दंततालव्य ) १ चोहोंकडुन आलेली अडचणीची स्थिति ; घोंटाळा ; संकट . २ चेप ; दाब ; अटकाव ; कोंडमारा . ३ रेव ; रेतीचे बारीक कण ; खड्याचा अंश ( भाकरी पीठ इ० तील . ४ ( गवंडी ) बारीक , अर्धा इंची खडी . ५ माघार घेणें ; भीतीनें शरण्फ़ जाणें ; मागें पाय काढणें . ( क्रो० खाणें ). ' इंग्रजी सैन्यानें कच खाल्ली .' - इंप १३९ . ६ भांडाभांडी ; तटा ; मारामारी . ( ध्व )

कच     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
कच  m. m. the hair (esp. of the head), [Ragh.] ; [Bhartṛ.] &c. cf.[RTL. 194,] note 1
a cicatrix, a dry sore, scar, [L.]
a band, the hem of a garment, [L.]
a cloud, [L.]
N. of a son of बृहस्पति, [MBh.] ; [BhP.] ; [Rājat.]
N. of a place

कच     

कचः [kacḥ]   [कच्यन्ते बध्यन्ते इति कचः, कच्-अच्]
Hair (especially of the head); कचेषु च निगृह्यैतान् Mb.; see ˚ग्रह below; अलिनीजिष्णुः कचानां चयः [Bh.1.5.]
A dry or healed sore, scar.
A binding, band.
The hem of a garment.
A cloud.
 N. N. of a son of Brihaspati. [In their long warfare with the demons, the gods were often times defeated, and rendered quite helpless. But such of the demons as would be slain in battle were restored to life by Śukrāchārya, their preceptor, by means of a mystic charm which he alone possessed. The gods resolved to secure, if possible, this charm for themselves, and induced Kacha to go to Śukrāchārya and learn it from him by becoming his disciple. So Kacha went to the preceptor, but the demons killed Kacha twice lest he should succeed in mastering the lore; but on both occasions he was restored to life by the sage at the intercession of Devayānī, his daughter, who had fallen in love with the youth. Thus discomfited the Asuras killed him a third time, burnt his body, and mixed his ashes with Śukra's wine; but Devayānī again begged her father to restore to life the youth. Not being able to resist his daughter's importunities, Śukra once more performed the charm, and, to his surprise, heard the voice of Kacha issuing from his own belly. To save his own life the sage taught him the muchcoveted charm, and, on the belly of Śukra being ripped open, Kacha performed the charm and restored his master to life. Devayānī thence forward began to make stronger advances of love to him, but he steadily resisted her proposals, telling her that she was to him as a younger sister. She thereupon cursed him that the great charm he had learnt would be powerless; he, in return, cursed her that she should be sought by no Brāhmaṇa, but would become a Kṣatriya's wife.]
चा A female elephant; करिण्यां तु कचा स्त्रियाम् । मेदिनी.
Beauty, splendour. -Comp.
-अग्रम्   curls, end of hair.
-आचित a.  a. having dishevelled hair; कचाचितौ विष्वगिवागजौ गजौ [Ki.1.36.]
-आमोदः a.  a. fragrant ointment of the hair (वाळा).
-ग्रहः   seizing the hair, seizing (one) by the hair; [Mb.5.155.5;] [R.1.47,] पलायनच्छलान्यञ्जसेति रुरुधुः कचग्रहैः [R.19.31.]
पः 'cloud drinker', grass.
a leaf. (-पम्) a vessel for vegetables.
-पक्षः, -पाशः, -हस्तः   thick or ornamented hair; (according to Ak. these three words denote a collection; पाशः, पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः कचात्परे).-मालः smoke.

कच     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
कच   r. 1st cl. (कचते)
1. To bind.
2. To shine.
3. To sound. (इ) कचि r. 1st cl. (कञ्चते)
1. To shine.
2. To bind; also काचि.
कच  m.  (-चः)
1. The hair.
2. A proper name, the son of VRIHASPATI. 3. Binding or a binding.
4. A cicatrix, a dry or healed sore.
5. A cloud.
 f.  (-चा)
1. A female elephant.
2. Beauty, brilliance.
E. कच् to bind, &c. अच् affix, fem. टाप्.
ROOTS:
कच् अच् टाप्

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