यक्ष n. देवयोनि की एक जातिविशेष, जो पुलह एवं पुलस्त्य ऋषिओं की संतान मानी जाती है
[म.आ.६०.५४१] । महाभारत में इन लोगों को ‘क्षूद्रदेवता’ कहा गया है, एवं कुबेर को इनका राजा कहा गया है
[म.आ.१.३३] ;
[व.१११.१०-११] । ये लोग कुबेर की सभा में लाखों की संख्या में उपस्थित रह कर, उसकी उपासना करते थे
[म.स.१०.१८] । पद्म के अनुसार, ब्रह्मा के पॉंचवें शरीर से यक्ष एवं राक्षस उत्पन्न हुये । इन्हे कोई माता न थी, क्यों कि, ब्रह्मा ने अपने मनःसामर्थ्य से इन्हे उत्पन्न किया था (ब्रह्मन् देखिये) । उत्पन्न होत ही इन्होंने ब्रह्मा से पूछा, ‘हमारा कर्तव्य क्या हैं?’ (किं कुर्भः) । फिर ब्रह्मा ने इन्हे कहा, ‘तुम यज्ञ करो’ (यक्षध्वम्) । इसीकारण इन्हे ‘यक्ष’ नाम प्राप्त हुआ
[वा.रा.उ.४.१३] । यक्ष नाम की यह उपपति कल्पनारम्य प्रतीत होती हैं । केन उपनिषद में ‘यक्ष’ शब्द का अर्थ ‘आदि कारण ब्रह्म’ दिया गया है । ये लोग विद्याधरों के निवासस्थान के नीचे मेरु पर्वत के समीप रहते थे । महाभारत एवं पुराणों में निम्नलिखित यक्षों का निर्देश प्राप्त हैः
यक्ष II. n. एक यक्ष, जिसने पाण्डवों के वनवासकाल में युधिष्ठिरादि पाण्डवों को तत्त्वज्ञानविषयक प्रश्न पूछे थे
[म.व.२९८.६-२५] । ये सारे प्रश्न धर्म ने यक्ष का वेष धारण कर पूछे थे (धर्म १. देखिये) ।
यक्ष III. n. एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा का पुत्र था । इसका जन्म संध्यासमय में हुआ था । अपने बाल्यकाल में यह अपनी माता को खाने के लिए दौडा । किन्तु इसके छोटे भाई रक्षस् ने इसका निवारण किया ।
यक्ष III. n. ब्रह्मांड में इसका स्वरुपवर्णन प्राप्त है, जहॉं इसे विलोहित, एककर्ण, मुंजकेश, ह्रस्वास्य, दीर्गजिह्र, बहुदंष्ट्र, महाहनु, रक्तपिंगाक्षपाद, चतुष्पाद, दो गतियों का, सारे शरीर पर बालवाला, चतुर्भुज, सुंदर नाकवाला, एवं बडे मुँहवाला कहा गया है
[ब्रह्मांड.३.७.४२] ।
यक्ष III. n. इसकी पत्नी का नाम जंतुधना था, जो शंड नामक असुर की पत्नी थी
[ब्रह्मांड.३.७.८६] । अपनी इसे पत्नी से, इसे ‘यातुधान’ सामूहिक नाम धारण करनेवाले राक्षस पुत्ररुप में उत्पन्न हुयें (यातुधान देखिये) । एक बार इसने वसुरुचि नामक गंधर्व का रुप ले कर्म, ऋतुस्थला अप्सरा से संभोग किया, जिअसे इसे रजतनाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
[ब्रह्मांड.३.७.१-१२] । पुत्र जन्म के पश्चात्, इसने क्रतुस्थला को अप्सरागणों में लौटा दिया ।
यक्ष IV. n. एक व्यास (व्यास देखिये) ।