बिप्र एक बालक मृतक राखेउ राम दुआर ।
दंपति बिलपत सोक अति आरत करत पुकार ॥१॥
एक ब्राह्मण ( तथा उसकी स्त्री ) ने अपना मरा बालक लाकर श्रीरामके द्वारपर रख दिया । पति-पत्नी शोकसे अत्यन्त दुःखी होकर विलाप करते हुए पुकार कर रहे थे ॥१॥ ( प्रश्न-फल अशुभ है । )
राम सोच संकोच बस सचिव बिकल संताप ।
बालक मीचु अकाल भइ राम राज केहि पाप ॥२॥
श्रीरामजी संकोचके कारण चिन्तामें पड़ गये, मन्त्री दुःखसे व्याकुल हो गये कि श्रीरामके राज्यमें किसके पापसे बालककी असमयमें मृत्यु हुई ॥२॥
( प्रश्न-फल निकृष्ट है ।)
बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु ।
राम राज परिनाम भल कीजिय बेगि बिचारु ॥३॥
( उसी समय ) आकाशसे निर्मल ( स्पष्ट ) देववाणी हुई कि इसका कारण प्रजाके किसी व्यक्तिका दूषित आचरण है । शीघ्र विचार कीजिये । ' राम-राज्यमें परिणाम तो उत्तम ही होगा '॥३॥
( चिन्ता दूर होगी । )
कोसल पाल कृपाल चित बालक दीन्ह जिआइ ।
सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ ॥४॥
दयालुहृदय श्रीकोसलनाथ रघुनाथजीने ( ब्राह्मणके ) बालकको जीवित कर दिया । यह शकुन शुभ है, कुशल एवं कल्याणका सूचक है । रोगी नहाकर उठ खडा़ होगा ॥४॥
बालकु जिया बिलोकि सब कहत उठा जनु सोइ ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ ॥५॥
( ब्राह्मणके ) बालकको जीवित हो उठा देख सब कहने लगे - मानो यह सोकर उठा है ।' यह शुभ शकुन सोचको दूर करनेवाला है, श्रीरामकी कृपासे भलाई होगी ॥५॥
सिला सुतिया भइ गिरि तरे मृतक जिए जग जान ।
राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान ॥६॥
श्रीरामकी कृपासे पत्थर ( अहल्या ) सुन्दरी स्त्री हो गयी, पर्वत ( समुद्रपर ) तैरने लगे और मृतक ( बालक ) जी उठा-यह संसार जानता है । यह शकुन शुभ है, सभी कल्याण सरलतासे प्राप्त होंगे ॥६॥
केवट निसिचर बिहँग मृग किए साधु सनमानि ।
तुलसी रघुबन की कृपा सगुन सुमंमगल खानि ॥७॥
केवट ( निषादराज गृह ) राक्षस ( विभीषण ), पक्षी ( जटायु ) एवं पशुओं ( वानरों ) को श्रीरघुनाथजीने कृपा करके आदर देकर सप्तपुरुष बना दिया । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन उत्तम मंगलोंकी खान है ॥७॥