रघुपति आयसु अमरपति अमिय सींचि कपि भालु ।
सकल जिआए सगुन सुभ सुमरहु राम कृपालु ॥१॥
श्रीरघुनाथजीकी आज्ञासे देवराज इन्द्रने अमृत-वर्षा करके सभी वानर-भालुओंको जीवित करे दिया । कृपालु श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन शुभ है ॥१॥
सादर आनी जानकी हनुमान प्रभु पास ।
प्रीति परस्पर समउ सुभ सगुन सूमंगल बास ॥२॥
हनुमान्जी आदरपूर्वक श्रीजानकीजीको प्रभुके समीप ले आये । यह शकुन सुमंगलका निवास है-परस्पर प्रेम रहेगा, समय सुन्दर ( सुकाल ) रहेगा ॥२॥
सीता सपथ प्रसंग सुभ सीतल भयउ कृसानु ।
नेम प्रेम ब्रत धरम हित सगुन सुहावनु जानु ॥३॥
श्रीजानकीजीके शपथ-ग्रहणका प्रसंग शुभ है, उनके लिये अग्नि शीतल हो गया था । नियम-पालन प्रेम ( भक्ति ), व्रत एवं धर्माचरणके लिये शकुन तब उत्तम समझो ॥३॥
सनमाने कपि भालु तब सादर साजि बिमानु ।
सीय सहित सानुज सदल चले भानु कुल भानु ॥४॥
सूर्यवंशके सूर्य श्रीरघुनाथजीने सभी वानर-भालुओंका सम्मान किया, फिर आदरपुर्वक पुष्पकविमान सजाकर उसमें श्रीजानकीजी, लक्ष्मणजी तथा अपने दलसहित बैठकर ( अयोध्याको ) चले ॥४॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान ।
अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान ॥५॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं और मंगलगान कर रहे हैं । ( इस प्रकार ) श्रीअयोध्यानाथ ( श्रीराम ) अयोध्या चले । यह शकुन कुशल-मंगल तथा भलाइका सूचक है ॥५॥
( विदेश गया व्यक्ति सकुशल लौटेगा । )
सिंधु सरोवर सरित गिरि कानन भूमि बिभाग ।
राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग ॥६॥
श्रीराम प्रेमकी उमंगमें आकर जानकीको समुद्र, सरोवर, नदियाँ, पर्वत वन तथा विभिन्न भूभाग दिखला रहे हैं ॥६॥
( प्रश्न-फल श्रेष्ठ है । )
तुलसी मंगल सगुन सुभ कहत जोरि जुग हाथ ।
हंस बंस अवतंस जय जय जय जानकि नाथ ॥७॥
तुलसीदास दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं-'सूर्यवंशविभुषण श्रीजानकीनाथकी जय हो ! जय हो !! जय हो !!!' यह शुभ शकुन मंगलकारी है ॥७॥