पाहि पाहि असरन सरन, प्रनतपाल रघुराज ।
दियो तिलक लंकेस कहि राम गरिब नेवाज ॥१॥
( विभीषणने श्रीरामके पास जाकर कहा- ) ' हे अशरणशरण ! शरणागतरक्षक श्रीरघुनाथजी ! रक्षा करो ! रक्षा करो ! रक्षा करो !' ( यह सुनकर ) दोनोंपर कृपा करनेवाले श्रीरामने ( विभीषणको ) लंकेश कहकर राजतिलक कर दिया ॥१॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
लंक असुभ चरचा चलति हाट बाट घर घाट ।
रावन सहित समाज अब जाइहि बारह बाट ॥२॥
लंकाके बाजारोंमें, मार्गोपर, घरोंमें तथा घाटोंपर यही अमंगल - चर्चा होती रहती है कि ' अब समाजके साथ रावण नष्ट हो जायगा ॥२॥
( प्रश्न-फल अशुभ है । )
ऊकपात दिकादाह दिन, फेकरहिम स्वान सियार ।
उदित केतु गतहेतु महि कंपाति बारहि बार ॥३॥
( लंकामें ) दिनमें ही उल्कापात होता है, दिशाओमें अग्निदाह होता है, और सियार रोते हैं, स्वार्थका नाशक धूमकेतु उगता है और बार-बार पृथ्वी काँपती ( भूकम्प होता ) है ॥३॥ ( प्रश्न-फल महान् अनर्थका सुचक है । )
राम कृपाँ कपि भालु करि कौतुक सागर सेतु ।
चले पार बरसत बिबुध सुमन सुमंगल हेतु ॥४॥
श्रीरामकी कृपासे खेल-ही-खेलमें समुद्रपर सेतु बनाकर वानर-भालु समुद्रपार चले, उनके मंगलके लिये देवता पुष्पवर्षा कर रहे हैं ॥४॥
( प्रश्न-फल श्रेष्ठ है । )
नीच निसाचर मीचु बस चले साजि चतुरंग ।
प्रभु प्रताप पावक प्रबल उडि़ उडि़ परत पतंग ॥५॥
नीच राक्षस मृत्युके वश होकर चतुरंगिणी ( पैदल, घुडसवार, हाथी और रथोंकी ) सेना सजाकर चले । प्रभु श्रीरामजीका प्रताप प्रचण्ड अग्निके समान हैं,जिसमें पतिंगोंकें समान ये उड़ उड़कर गिर रहे है ॥५॥
( प्रश्न-फल अशुभ है । )
साजि साजि बाहन चलाहिं जातुधानु बलवानु ।
असगुन असुभ न गगहिं गत आइ कालु नियरानु ॥६॥
बलवान् राक्षस वाहन ( सवारी ) सजाकार चलते हैं । अशुभसूचक अपशकुन हो रहे हैं; पर ये उन्हें गिनते नहीं ( उनपर ध्यान नहीं देतें, क्योंकि ) उनकी आयु समात्प हो गयी है और उनका मृत्यु-काल समीप आ गया है ॥६॥
( प्रश्न-फल विनाशसूचक है । )
लरत भालु कपि सुभट सब निदरि निसाचर घोर ।
सिर पर समरथ राम सो साहिब तुलसी तोर ॥७॥
वानर-भालुओंके सभी श्रेष्ठ योधा घोर राक्षसोंकी उपेक्षा करके युद्ध कर रहे हैं; क्योकीं श्रीराम-जैसे सर्वसमर्थ प्रभु उनके सिरपर ( रक्षक ) हैं । तुलसीदासजी कहते हैं कि वे ही तुम्हारे ( मेरे ) भी स्वामी हैं ॥७॥
( शकुन शत्रुपर विजय सूचित करता है । )