राम नाम कलि कामतरु राम भगति सुरधेनु ।
सगुन सुमंगल मूल जग गुरु पद पंकज रेनु ॥१॥
कलियुगमें श्रीराम-नाम कल्पवृक्ष ( मनचाहा वस्तु देनेवाला ) है और रामभक्ति कामधेनु है । गुरुदेवके चरणकमलोंकी धूलि जगत्में सारे शुभ शकुनों तथा कल्याणोंकी जड़ है ॥१॥
( प्रश्न फल शुभ है । )
जलधि पार मानस अगम रावन पालित लंक ।
सोच बिकल कपि भालु सब, दुहुँ दिसि संकट संक ॥२॥
समुद्रके पार मनसे भी अगम्य रावणद्वारा पालित लंका नगरी है । सारे वानर-भालू इस चिन्तासे व्याकुल हो रहे हैं कि दोनों और ( समुद्रपार होनेमें और बिना कार्य पुरा किये लौटनेमें ) शंका और विपत्ति है ॥२॥
( प्रश्न-फल निकृष्ट है । )
जामवंत हनुमान बलु कहा पचारि पचारि ।
राम सुमिरि साहसु करिय, मानिय हिएँ न हारि ॥३॥
जाम्बवन्तजीने बार बार ललकारकर हनुमान्जीके बलका वर्णन किया । ( प्रश्न-फल यह है कि ) श्रीरामका स्मरण करके साहस करो । हृदयमें हार मत मानो । ( हताश मत हो ) ॥३॥
राम काज लगि जनमु सुनि हरषे हनुमान ।
होइ पुत्र फलु सगुन सुभ, राम भगतु बलवान ॥४॥
'तुम्हारा संसारमें जन्म ही श्रीरामका कार्य करनेके लिये हुआ है' यह सुनकर हनुमान्जी प्रसन्न हो गये । यह शकुन शुभ है, इसका फल यह है कि श्रीरामभक्त बलवान् पुत्र होगा ॥४॥
कहत उछाहु बढा़इ कपि साथी सकल प्रबोधि ।
लागत राम प्रसाद मोहि गोपद सरिस पयोधि ॥५॥
सभी साथियोंको आश्वासन देकर उनका उत्साह बढा़ते हुए हनुमान्जी कहते हैं-'श्रीरामकी कॄपासे समुद्र मुझे गायके खुरसे बने गड्ढेके समान लगता है' ॥५॥
( प्रश्न फल शुभ है, कठिनाई दूर होगी । )
राखि तोषि सबु साथ सुभ, सगुन सुमंगल पाइ ।
कुदि कुधर चढि़ आनि उर, सीय सहित दोउ भाइ ॥६॥
साथके सब लोगोंको वहीं रखकर ( रहनेको कहकर ) तथा सन्तोष देकर उत्तम मंगलकारी शकुन पाकर, श्रीजानकीजीके साथ दोनों भाई ( श्रीराम-लक्ष्मण ) को हृदयमें ले आकर ( स्मरण करके ) कूदकर ( हनुमान्जी ) पर्वतपर चढ़ गये ॥६॥
( यात्राके लिये शुभ शकुन है । )
हरषि सुमन बरषत बिबुध, सगुन सुमंगल होत ।
तुलसी प्रभु लंघेउ जलधि प्रभु प्रताप करि पोत ॥७॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्पवर्षा कर रहे हैं, श्रेष्ठ मंगलकारी शकुन हो रहे हैं । तुलसीदासजीके स्वामी ( हनुमान्जी ) प्रभु श्रीरामके प्रतापको जहाज बनाकर ( श्रीरामके प्रतापसे ) समुद्र कूद गये ॥७॥
( प्रश्न-फल श्रेष्ठ है । )