सीय स्वयंबर समउ भल, सगुन साध सब काज ।
कीरति बिजय बिबाह विधि, सकल सुमंगल साज ॥१॥
श्रीजानकीजीके स्वयंवरका समय उत्तम है, यह शकुन सब कर्योको सिद्ध करनेवाला है । कीर्ति, विजय तथा विवाह आदि कार्योमें सब प्रकारके मंगलमय संयोग उपस्थित होंगे ॥१॥
राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप ।
सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप ॥२॥
राजाओंके समाजमें शंकरजीके धनुषको तोड़कर श्रीराम सुशोभित हैं । यह शकुन सुहावना है, बडा़ लाभ होगा, दुसरेकी सभामें विजय तथा प्रतापकी प्राप्ति होगी ॥२॥
लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर विवाहु ।
सकल सिद्धि दायक समउ सुभ सब काज उछाहु ॥३॥
श्रीसीता-रामजीक विवाह लाभ तथा आनन्द-मंगलकी सीमा है ॥ यह समय बडा़ शुभ तथा सभी सिद्धियोंको देनेवाला है, सभी कार्योंमें उत्साह रहेगा ॥३॥
कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल ।
समउ सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज ॥४॥
श्रीअयोध्यानरेश ( महाराज दशरथ ) के कुमार ( श्रीराम ) के गलेमें श्रीजानकीजीने जयमाला डाल दी । यह समय शुभ है, शकुन उत्तम है, सब कर्योमें आनन्द और भलाई होगी ॥४॥
हरषि बिबुध बरषसिं सुमन, मंगल गान निसान ।
जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान ॥५॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे है, मंगलगीत गाये जा रहे हैं, नगारे बज रहे हैं, सूर्यकुलरूपी कमल ( को प्रकुल्लित करने ) के लिये सूर्यके समान आनंद और मंगलके निधान श्रीरामजीकी जय हो ! जय हो ! ॥५॥
( प्रश्न - फल उत्तम है । )
सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज ।
आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज ॥६॥
महाराज जनकजीने अपने कुलपुरोहित शतानन्दजीको ( अयोध्या ) भेजा, महाराज दशरथ बरातके साथ जनकपुर आये । ( उनके ) सभी कार्य सिद्धु हुए । यह शकुन शुभ है ॥६॥
दसरथ पुरन परम बिधू, उदित समय संजोग ।
जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग ॥७॥
तुलसीदास कहते हैं, कि इस (शुभ) समय ( श्रीरामविवाह ) का संयोग आनेसे ( जनकपुरमें ) महाराज दशरथरूपी पूर्ण चंद्रका उदय हुआ है । इससे जनकपुरूपी सरोवरके कुमुदपुष्पके समान सब लोग ( नगरवासी ) प्रफुल्लित हो गये हैं ॥७॥
( यह प्रश्न-फल प्रियजनका मिलन बतलता है । )