कृष्णैकादशीव्रत
( भविष्योत्तर ) -
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशीको प्रातःस्त्रानादिके पश्चात्
' ममाखिलपापक्षयपूर्वकश्रीपरमेश्वरप्रीतिकामनया मार्गशीर्षकृष्णैकादशीव्रतं करिष्ये ।'
यह संकल्प करके उपवास करे । तिथि - निर्णय और व्रत - नियम यथापूर्व देखले । ' कथाका सार ' यह है कि ' सत्ययुगमें तालजंघका पुत्र ' मुर ' नामका दानव था । वह महाबली और विलक्षण बुद्धिमान् था । उसने समय पाकर स्वर्गके देवताओंको मार भगाया और उनके स्थानमें नये देवता बनाकर भर दिये । इससे स्वर्गके देवताओंको बड़ा कष्ट हुआ, वे शिवजीके समीप गये और शिवजीने उनको गरुड़ध्वज ( भगवान् ) के पास भेज दिया । तब भगवानने उनकी रक्षाका विधान किया । उसमें भगवानके शरीरसे एक परम रुपवती स्त्री उत्पन्न हुई । उसको देखकर मुर मोहित हो गया और उस सुन्दरीपर आक्रमण करने लगा, तब उसने मुरको मार डाला । यह देखकर भगवानने उस स्त्रीको वर दिया कि ' तू मेरे शरीरसे उत्पन्न हुई है, अतः तेरा नाम ' उत्पन्ना ' होगा और तू देवताओंका संकट निवारण करनेमें समर्थ है; अतएव जो तेरा व्रत करेंगे, उनकी अभीष्ट - सिद्धि होगी ।' इस वरको प्राप्त करके वह कन्या अलक्षित हो गयी । कैटभ देश ( काठियावाड़ ) के महादरिद्र सुदामाने पत्नीके सहित ' उत्पन्ना एकादशी ' का व्रत किया था, इससे वह सब दुःखोंसे मुक्त होकर पुत्रवान् , सुखी और सम्पत्तिशाली बन गया ।