धन्यव्रत
( वाराहपुराण ) -
यह व्रत मार्गशीर्षमें शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षोंकी प्रतिपदासे प्रारम्भ होकर प्रत्येक शुक्ल या कृष्ण प्रतिपदाको वर्षभर करनेसे पूर्ण होता है । इसमें नक्तव्रत किया जाता है । उस दिन रात्रिके समय विष्णुका पूजन करते समय - ' वैश्वानराय पादौ ', ' अग्नये उदरम् ', ' हविर्भुजे उरः ', ' द्रविणोदाय भुजे ', ' संवर्ताय शिरः ' और ' ज्वलनायेति सर्वाङ्गम् ' ( पूजयामि ) से अङ्गपूजा करके गन्ध - पुष्पादि अर्पण करे । वर्षके अन्तमें व्रतके पूर्ण होनेपर सुवर्णकी अग्निकी मूर्ति बनवाकर उसे लाल वस्त्रसे भूषित करके लाल रंगके गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करे और प्रतिदिन विष्णुकी भक्ति रखे तो निर्धन भी धनवान् हो सकता है ।